लुई पास्चर एक फ़्रेंच रसायनशास्त्री तथा सूक्ष्म जीव शास्त्री थे। उन्होने जीवाणुओ से होने वाली बीमारीयों तथा टीके के सिद्धांत की खोज की थी। फ्रांस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई पास्चर का जन्म सन् 1822 ई. में नैपोलियन बोनापार्ट के एक व्यवसायी सैनिक के यहां हुआ था।
कर्म-क्षेत्र: रसायन शास्त्र, सूक्ष्म जीव शास्त्र
शिक्षा: École Normale Supérieure
विशेष खोज: रैबीज वैक्सिन
कार्य : स्ट्रासबर्ग विश्वविद्यालय, लील्ले विज्ञान तथा तकनिकी विश्वविद्यालय ,École Normale Supérieure ,पास्चर इंस्टीट्युट
पुरस्कार-उपाधि: लीवेनहोएक मेडल, मान्ट्यान पुरस्कार ,कापली मेडल ,रमफ़र्ड मेडल, अलबर्ट मेडल
सम्मान: लुई पास्चर के सम्मान मे ही दूध को 60 डीग्री सेल्सीयस तक गर्म कर कीटाणु रहित करने की प्रक्रिया को ’पास्चराइजेशन’ कहते है।,
आपने वास्तव में मानव जाति को यह अनोखा उपहार दिया। आपके देशवासियों ने आपको सब सम्मान एवं सब पदक प्रदान किए। उन्होंने आपको सम्मान में पास्चर इंस्टीट्यूट का निर्माण किया: किन्तु कीर्ति एव ऐश्वर्य से आप मे कोई परिवर्तन नहीं आया। आप जीवनपर्यन्त तक सदैव रोगों को रोक कर पीड़ा हरण के उपायों की खोज में लगे रहे। सन् 1895ई में आपकी निद्रावस्था में ही मृत्यु हो गई।
फ्रांस के मदिरा तैयार करने वालों का एक दल, एक दिन लुई पास्चर से मिलने आया। उन्होने आप से पूछा कि हर वर्ष हमारी शराब खट्टी हो जाती है। इसका क्या कारण है?
लुई पास्चर ने अपने सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा मदिरा की परीक्षा करने में घण्टों बिता दिए। अंत में आपने पाया कि जीवाणु नामक अत्यन्त नन्हें जीव मदिरा को खट्टी कर देते हैं। अब आपने पता लगाया कि यदि मदिरा को 20-30 मिनट तक 60 सेंटीग्रेड पर गरम किया जाता है तो ये जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। ताप उबलने के ताप से नीचा है। इससे मदिरा के स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बाद में आपने दूध को मीठा एवं शुद्ध बनाए रखने के लिए भी इसी सिद्धान्त का उपयोग किया। यही दूध 'पास्चरित दूध' कहलाता है।
एक दिन लुई पास्चर को सूझा कि यदि ये नन्हें जीवाणु खाद्यों एवं द्रव्यों में होते हैं तो ये जीवित जंतुओं तथा लोगों के रक्त में भी हो सकते हैं। वे बीमारी पैदा कर सकते हैं। उन्हीं दिनों फ्रांस की मुर्गियों में 'चूजों का हैजा' नामक एक भयंकर महामारी फैली थी। लाखों चूजे मर रहे थे। मुर्गी पालने वालों ने आपसे प्रार्थना की कि हमारी सहायता कीजिए। आपने उस जीवाणु की खोज शुरू कर दी जो चूजों में हैजा फैला रहा था। आपको वे जीवाणु मरे हुए चूजों के शरीर में रक्त में इधर-उधर तैरते दिखाई दिए। आपने इस जीवाणु को दुर्बल बनाया और इंजेक्शन के माध्यम से स्वस्थ चूजों की देह में पहुँचाया। इससे वैक्सीन लगे हुए चूजों को हैजा नहीं हुआ। आपने टीका लगाने की विधि का आविष्कार नहीं किया पर चूजों के हैजे के जीवाणुओं का पता लगा लिया।
इसके बाद लुई पाश्चर ने गायों और भेड़ों के ऐन्थ्रैक्स नामक रोग के लिए बैक्सीन बनायी: पर उनमें रोग हो जाने के बाद आप उन्हें अच्छा नहीं कर सके: किन्तु रोग को होने से रोकने में आपको सफलता मिल गई। आपने भेड़ों के दुर्बल किए हुए ऐन्थ्रैक्स जीवाणुओं की सुई लगाई। इससे होता यह था कि भेड़ को बहुत हल्का ऐन्थ्रैक्स हो जाता था; पर वह इतना हल्का होता था कि वे कभी बीमार नहीं पड़ती थीं और उसके बाद कभी वह घातक रोग उन्हें नही होता था। आप और आपके सहयोगियों ने मासों फ्रांस में घूमकर सहस्रों भेड़ों को यह सुई लगाई। इससे फ्रांस के गौ एवं भेड़ उद्योग की रक्षा हुई।
आपने तरह-तरह के सहस्रों प्रयोग कर डाले। इनमें बहुत से खतरनाक भी थे। आप विषैले वाइरस वाले भयानक कुत्तों पर काम कर रहे थे। अत में आपने इस समस्या का हल निकाल लिया। आपने थोड़े से विषैले वाइरस को दुर्बल बनाया। फिर उससे इस वाइरस का टीका तैयार किया। इस टीके को आपने एक स्वस्थ कुत्ते की देह में पहुँचाया। टीके की चौदह सुइयाँ लगाने के बाद रैबीज के प्रति रक्षित हो गया। आपकी यह खोज बड़ी महत्त्वपूर्ण थी; पर आपने अभी मानव पर इसका प्रयोग नहीं किया था। सन् 1885 ई. की बात है। लुई पाश्चर अपनी प्रयोगशाला में बैठे हुए थे। एक फ्रांसीसी महिला अपने नौ वर्षीय पुत्र जोजेफ को लेकर उनके पास पहुँची। उस बच्चे को दो दिन पहले एक पागल कुत्ते ने काटा था। पागल कुत्ते की लार में नन्हे जीवाणु होते हैं जो रैबीज वाइरस कहलाते हैं। यदि कुछ नहीं किया जाता, तो नौ वर्षीय जोजेफ धीरे-धीरे जलसंत्रास से तड़प कर जान दे देगा।
आपने बालक जोजेफ की परीक्षा की। कदाचित् उसे बचाने का कोई उपाय किया जा सकता है। बहुत वर्षों से आप इस बात का पता लगाने का प्रयास कर रहे थे कि जलसंत्रास को कैसे रोका जाए? आप इस रोग से विशेष रूप से घृणा करते थे। अब प्रश्न था कि बालक जोजेफ के रैबीज वैक्सिन की स
No comments:
Post a Comment
https://m.facebook.com/mdhifzur9631/