Monday, 12 June 2017

Christiaan Huygens

क्रिश्चियन हायजेंस (Christiaan Huygens),(14 अप्रैल 1629 – 8 जुलाई 1695) एक प्रमुख डच गणितज्ञ और स्वाभाविक दार्शनिक थे। उन्हे विशेष रूप से एक खगोलशास्त्री, भौतिक विज्ञानी, अनिश्चिततावादी और समय विज्ञान वेत्ता के रूप में जाना जाता है।

हायजेंस ने शनि के वलयो का अध्ययन किया था तथा उन्होने शनि के चंद्रमा टाईटन को खोजा था। उन्होने पेंडुलम घड़ी बनायी थी।

हायजेंस को उनकी प्रकाश के तरंग सिद्धांत के लिये जाना जाता है जोकि न्युटन के कण(corpuscles) सिद्धांत से मेल नही खाता था।

हायजेंस (Huyghens) ने 1678 ई. में 'प्रकाश का तरंग सिद्धान्त' (wave theory of light) का प्रतिपादन किया था। इसके अनुसार समस्त संसार में एक अत्यंत हलका और रहस्यमय पदार्थ ईथर (Ether) भरा हुआ है : तारों के बीच के विशाल शून्याकाश में भी और ठोस द्रव्य के अंदर तथा परमाणुओं के अभ्यंतर में भी। प्रकाश इसी ईथर समुद्र में अत्यंत छोटी लंबाईवाली प्रत्यास्थ (Elastic) तरंगें हैं। लाल प्रकाश की तरंगें सबसे लंबी होती हैं और बैंगनी की सबसे छोटी।

इससे व्यतिकरण( (Interference) और विर्वतन(reflection) की व्याख्या तो सरलता से हो गई, क्योंकि ये घटनाएँ तो तरंगमूलक ही हें। ध्रुवण की घटनाओं से यह भी प्रगट हो गया कि तरंगें अनुदैर्ध्य (Longitudinal) नहीं, वरन्‌ अनुप्रस्थ (Transvers) हैं। हायजेंस की तरंगिकाओं को परिकल्पना से अपर्वतन और परावर्तन तथा दोनों का योगपत्य भी अच्छी तरह समझ में आ गया। किंतु अब दो कठिनाइयाँ रह गईं। एक तो सरल रेखा गमन की व्याख्या न हो सकी। दूसरे यह समझ में नही आया कि ईथर की रगड़ के कारण अगणित वर्षो से तीव्र वेग से घूमते हुए ग्रहों और उपग्रहों की गति में किंचिन्मात्र भी कमी क्यों नहीं होती। इनसे भी अधिक कठिनाई यह थी कि न्यूटन जैसे महान्‌ वैज्ञानिक का विरोध करने का साहस और सामर्थ्य किसी में न था। अत: प्राय: दो शताब्दी तक कणिकासिद्धांत ही का साम्राज्य अक्षुण्ण रहा।

सन्‌ 1807 में यंग (Young) ने व्यतिकरण का प्रयोग अत्यंत सुस्पष्ट रूप में कर दिखाया। इसके बाद फ़ेनल (Fresnel) ने तरंगों द्वारा ही सरल रेखा गमन की भी बहुत अच्छी व्याख्या कर दी। 1850 ई. में फूको (Foucalult) ने प्रत्यक्ष नाप से यह भी प्रमाणित कर दिया कि जल जैसे अधिक घनत्वावाले माध्यमों में प्रकाशवेग वायु की अपेक्षा कम होता है। यह बात कणिकासिद्धांत के प्रतिकूल तथा तरंग के अनुकूल होने के कारण तरंगसिद्धांत सर्वमान्य हो गया। इसके बाद तो इस सिद्धांत के द्वारा अनेक नवीन और आश्चर्यजनक घटनाओं की प्रागुक्तियाँ भी प्रेक्षण द्वारा सत्य प्रमाणित हुई।

वर्तमान मे प्रकाश के व्यवहार को क्वांटम सिद्धांत के समझा जाता है जिसके अनुसार प्रकाश के कण फोटान दोहरा व्यवहार रखते है, अर्थात वे कण और तरंग दोनो के जैसे व्यवहार करते है।

गेलिलियो ने प्रकाश का वेग (Speed of Light) नापने का सबसे पहला प्रयास किया। इसके बाद भी प्रयास किये गए इन में दूसरा प्रयास डेनिश खगोलविद रोमर तथा हायजेंस ने 1675 Rømer's determination of the speed of light में किया जो बाद में प्रकाश का वेग (Speed of Light) नापने का आधार बना। उन्होंने अपने सहायक के साथ वृहस्पति के चन्द्रमाओं के ग्रहण का प्रेक्षण करते हुए यह पाया कि प्रत्येक ग्रहण में चंद्रमा वृहस्पति की छाया में गायब हो जाता है। पुनः उदय पर ऐसी दो स्तिथियों में प्रकाश के पृथ्वी तक पहुचने की समय अवधियो में अंतर होता है। कभी यह अंतर कभी कम व कभी ज्यादा होता है। ऐसा पृथ्वी की स्तिथि के कारण होता है पृथ्वी और वृहस्पति के बीच की दूरी जब कम या ज्यादा होती है प्रकाश के पहुचने के दो समयावधि के अंतर व वृहस्पति से पृथ्वी की दूरी की गणना से प्रकाश का वेग 1,85,000 मील प्रति सेकंड ज्ञात कर लिया था।

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