Sunday, 1 November 2020

फ्लोरीन Fluorine

फ़्लोरीन आवर्त सारणी के सप्तसमूह का प्रथम तत्वहै, जिसमें सर्वाधिक अधातु गुण वर्तमान हैं। इसका एक स्थिर समस्थानिक प्राप्त है और तीन रेडियोऐक्टिव समस्थानिक कृत्रिम साधनों से बनाए गए हैं। इस तत्व को 1886 ई. में मॉयसाँ ने पृथक्‌ किया था। अत्यंत क्रियाशील तत्व होने के कारण इसको मुक्त अवस्था में बनाना अत्यंत कठिन कार्य था। मॉयसाँ ने विशुद्ध हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा पोटैशियम फ्लोराइड के मिश्रण के वैद्युत्‌ अपघटन द्वारा यह तत्व प्राप्त किया था। फ़्लोरीन मुक्त अवस्था में नहीं पाया जाता।
फ़्लोरीन समस्त तत्वों में अपेक्षाकृत सर्वाधिक क्रियाशील पदार्थ है। हाइड्रोजन के साथ यह न्यून ताप पर भी विस्फोट के साथ संयुक्त हो जाता है।
फ़्लोरीन का उपयोग कीटमारक के रूप में होता है। इसके कुछ यौगिक, जैसे यूरेनियम फ्लुओराइड, परमाणु ऊर्जा प्रयोगों में प्रयुक्त होते हैं। फ़्लोरीन के अनेक कार्बनिक यौगिक प्रशीतन उद्योग तथा प्लास्टिक उद्योग में काम आते हैं।
हाइड्रोफ्लुओरिक अम्ल अथवा हाइड्रोजन फ्लुओराइड (HF) अथवा (H2F2) अत्यंत विषैला पदार्थ है इसका विशुद्ध यौगिक विद्युत्‌ का कुचालक है। इसका जलीय विलयन तीव्र आम्लिक गुण युक्त होता है। यह काच पर क्रिया कर सकता है तथा सिलिकन फ्लुओराइड बनाता है। इस गुण के कारण इसका उपयोग काच पर निशान बनाने में होता है। हाइड्रोफ्लुओरिक अम्ल के लवण फ्लुओराइड कहलाते हैं। कुछ फ्लुओराइड जल में विलेय होते हैं।

Thursday, 15 August 2019

गिरता मानसून का स्तर

हर किसी को मानसून का बेशब्री से इन्तेजार रहता है मगर विगत वर्षो से मानसून में काफी गिरावट देखने को मिल रहा है, और आने वाले समय में और भी इससे ज्यादा देखने को मिल सकता हैं, इसका सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। भारत मे हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी मानसून काफी विलंब से देखने को मिला खास कर हिन्द महासागर की तरफ से आने वाली मानसून जो केरल में प्रवेश करती है जो काफी कमजोर रहा इसमें कही न कही मुझे लगता है जून के महीने में गुजरात के तटीय क्षेत्र में वायु चक्रवात का बहूत बड़ा असर रहा जिनके वजह से काफी कम मानसून देखने को मिल रहा है। जहाँ तक जलवायु परिवर्तन की बात करें तो ये एक बहूत बड़ा मुद्दा है जिसपे सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है नही तो आने वाले समय में जल संकट देखने को मिलेगा,आजकल जिस तरह पेड़ो की कटाई या फिर अवैध तरीके से खनन चल रहा है या फिर नदियों में बालू का अवैध ढंग से खनन स्थानीय माफिया के द्वारा किया जा रहा है जिसके कारण भूमिगत जल का स्तर काफी नीचे जा रहा है जो चिंता का विषय है,गत वर्ष देश के कुछ प्रमुख शहरों में जल की काफी किल्लत देखने को मिला इसमे कुछ प्रमुख शहर जैसे बंगलोर,चेन्नई,और देश के बहूत सारे हिस्सों में जल का संकट देखने को मिला,बंगलोर जो कि देश इलेक्ट्रॉनिक सिटी के नाम से जाना जाता है जहाँ कुछ दसक पहले बहूत सारे जलाशय और झील देखने को मिलता था जो कि आज कल विलुप्त की कगार पर पहुंच चुका है और कुछ अवैध तरीके से कब्जा कर भवन का निर्माण कर दिया गया है,जिसके वजह से आज शहर में लोग जल के लिए त्राहिमाम मचा रहे है। पिछले वर्ष दक्षिण अफ्रीका के शहर कैप्टाउन जो डे जीरो घोषित कर दिया गया था जहाँ पानी के लिए लोग तरस रहे थे,जहां अभी वहां के सरकार के द्वारा इसपर काम क्या जा रहा है। जल संकट का मुद्दा विश्व के सभी देशों के लिए अहम है, और इसपे सभी देशो इस विषय पर को कठोर कदम उठाने की जरूरत है।मेंने हाल के दिनों में एक न्यूज़ में देखा के लोग जल के लिए एक दूसरे से मार करने पर भी उतारू था और कुछ लोग गंदा पानी पीने को विवश थे,जिसे हमें सीख लेने की जरूरत है कि जल का उपयोग बहूत काम मात्रा में करें जितना जरूरी हो व्यर्थ जल का दोहन न करें आने वाले समय मे जल संकट या सुखाड़ से काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। आज जिस तरह गांव का शहरीकरण हो रहा है जहां पर भूमिगत जल का अवशोषण नही हो पा रहा है,सरकार को सतत विकास को लेकर इस क्षेत्र पर ध्यान देने की जरूरत है।संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य जो कि 2030 तक का पूरे विश्व के लिए स्वच्छ जल (पीने योग्य जल) का लक्ष्य रखा गया है,इसको मद्दे नजर रखते हुए काम करने की जरूरत है,जो कि आने वाली पीढ़ी के लिए वरदान साबित होगा।

जल ही जीवन है जल के बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है,आज जिस तरह नदियों और जलाशयों को प्रदूषित किया जा रहा है,बड़े-बड़े शहरों और महानगरों से निकलने वाली नालियों जिसमें न जाने कितने प्रकार के जहरीले रसायन मौजूद होते है जिससे जलीय जीवों के साथ-साथ बहूत सारे जीव जंतुओं के लिए काफी नुकसानदायक है,जल को स्वच्छ बनाने या फिर नदियों की सफाई करने के लिए बहूत सारी योजनाएं सरकार के द्वारा लाये गए मगर कही न कही सरकार इसमे विफल नजर आ रही है।        
                                                एम.एच.रहमान....✍️

Friday, 7 July 2017

सलीम अली

सोन चिरईया आए जा , आके खाना खाए जा ...............
जन्मदिन / सालिम अली (12 नवंबर)
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विश्वविख्यात पक्षी विज्ञानी सालिम अली का जन्म 12 नवंबर 1886 को मुंबई में हुआ । माइग्रेन के कारण बड़ी मुश्किल से 1913 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से 27 साल की उम्र में दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण हो पाए । पारिवारिक धंधे को देखने बर्मा गए , जहां के जंगलों मे शोध करके अपने कौशल को उत्तम बनाते रहे । खातून तहमीना अली से दिसंबर 1918 में निकाह किया।
मुंबई वापस आकर बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के सचिव डबल्यू.एस. मिलार्ड की देख-रेख में सालिम ने पक्षियों पर गंभीर अध्ययन करना शुरू किया , अपनी आत्मकथा The Fall of a Sparrow मे उन्होने विस्तार से अपने जीवन का वर्णन किया है । औपचारिक डिग्री न होने के कारण Zoological Survey of India के एक पक्षी विज्ञानी पद को हासिल करने में सालिम अली असमर्थ रहे , फिर बाद मे मुंबई के प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय में एक गाइड के रूप में नियुक्त हुए । मुम्बई के एक तटीय गांव में वीवर के प्रजनन का अध्ययन करने के बाद उन्होने हैदराबाद, कोचिन, त्रावणकोर, ग्वालियर, इंदौर और भोपाल जैसे रजवाड़ों मे पक्षियों का अध्ययन शुरू किया , इस कार्य में प्रसिद्ध Ornithologist ह्यूगो व्हिस्लर से उन्हे काफी सहयोग प्राप्त हुआ । उनकी पुस्तक "बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स" भारतीय पक्षियों का विश्वकोष माना जाता है ।
1976 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से उन्हें सम्मानित किया गया। 20 जून 1987 को उनके निधन के बाद भारत सरकार द्वारा 1990 में कोयंबटूर में सेंटर फॉर ओर्निथोलोजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (SACON) का नामकरण उनके नाम पर किया गया।
जन्मदिन पर भारत के महान पक्षी विज्ञानी सालिम अली को खेराजे अक़ीदत !

Friday, 23 June 2017

रसायन शास्त्र

लवण (Salt):-
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अम्ल एवं भस्म की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप लवण बनता है। इसमें लवण के अलावा जल का भी निर्माण होता है।
लवणों का उपयोग [Uses]:-
✔ खाने का सोडा या बेकिंग सोडा या सोडियम बाईकार्बोरेट (NaHCO3) का बेकिंग पाउण्डर के रूप में, पेट की अम्लीयता को दूर करने में एवं अग्निनाशक यंत्रों में उपयोग होता है।
साधारण नमक अर्थात् सोडियम क्लोराइड (NaCl) का खाने में, अचार के परिरक्षण तथा मांस एवं मछली के संरक्षण (Preservation) में उपयोग किया जाता है।
कास्टिक सोडा या सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) का अपमार्जक का चूर्ण बनाने में उपयोग होता है।
धोवन सोडा या सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3 ) का उपयोग कपड़े धोने में होता है।
पोटेशियम नाइट्रेट या शोरा (KNO3) का बारूद बनाने में एवं उर्वरक के रूप में उपयोग होता है। पोटेशियम नाइट्रेट को साल्टपीटर (Saltpeter) भी कहते है।
काॅपर सल्फेट का उपयोग विद्युत लेपन में एवं रंगाईछपाई में होता है।

भस्म (Base):-
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ऐसा यौगिक जो अम्ल से प्रतिक्रिया कर लवण एवं जल देता हो, जिसमें प्रोटाॅन ग्रहण करने की प्रवृत्ति हो एवं जल में घुलने से हाइड्राॅक्सिल आयन (OH-) देता हो, भस्म [Bases] कहलाता है।
भस्म स्वाद में कड़वा होता है तथा यह लाल लिट्मस को नीला कर देता है।
भस्मों का उपयोग [Uses]:-
दैनिक जीवन में कैल्शियम हाइड्राक्साइड [Ca(OH)2] का इस्तेमाल घरों में चूना पोतने में, गारा एवं प्लास्टर बनाने में, मिट्टी की अम्लीयता दूर करने में, ब्लीचिंग पाउण्डर बनाने में, जल को मृदु बनाने में तथा जलने पर मरहम-पट्टी करने में किया जाता है।
कास्टिक सोडा (NaOH) का साबुन बनाने, पेट्रोलियम साफ करने, कपड़ा एवं कागज बनाने आदि में किया जाता है।
✔ खाली चूना (CaO) का मकान बनाने में गारा के रूप में, शीशा तथा ब्लीचिंग पाउडर बनाने में किया जाता है।
पेट की अम्लीयता को दूर करने में मिल्क आॅफ मैग्नेशिया या मैग्नेशियम हाइड्राॅक्साइड Mg(OH)2 का प्रयोग होता है।

अम्ल (Acid):-
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ऐसा यौगिक जो जल में घुलकर हाइड्रोजन (H+) आयन देता है तथा जो किसी दूसरे पदार्थ को प्रोटाॅन प्रदान करने की क्षमता रखता है, अम्ल (Acid) कहलाता है। अम्ल स्वाद में खट्टे होते है तथा अम्ल का जलीय विलयन नीले लिट्मस पेपर को लाल कर देता है।
अम्लों का प्रयोग [Uses]:-
दैनिक जीवन में खाने के काम में, जैसेः- अंगूर में टार्टरिक अम्ल के रूप में, नीबू एवं नारंगी में- साइट्रिक अम्ल, चीनी में- फार्मिक अम्ल, सिरका एवं अचार में- एसीटिक अम्ल, खट्टे दूध में- लैक्टिक अम्ल, सेब में- मैलिक अम्ल, सोडावाटर एवं अन्य पेय पदार्थो में- कार्बनिक अम्ल के रूप में पाया जाता है।
आॅक्जैलिक अम्ल का प्रयोग कपड़े सेजंग के धब्बे हटाने में तथा फोटोग्राफी में किया जाता है।
H2SO4 एवं HNO3 का प्रयोग विस्फोटकों, उर्वरकों, दवाओं को बनाने तथा लोहे को साफ करने में आदि में होता है।
✔ सोना एवं चाँदी के शुद्धीकरण में नाइट्रिक अम्ल का प्रयोग किया जाता है।
✔ खाना पचाने में HCL अम्ल का प्रयोग होता है।

कैसे अपना ईलाज करते है जानवर

आपने कुत्ते और बिल्ली को घास खाते देखा होगा। बीमार होने पर वो ऐसा करते हैं। और भी कई जीव ऐसे ही अपना प्राकृतिक इलाज करते हैं। उनका सहज ज्ञान इंसान के लिए भी फायदेमंद हो सकता है।
1.परजीवियों से बचाव
चिंपाजी जब विषाणुओं के संक्रमण से बीमार होते हैं या फिर उन्हें डायरिया या मलेरिया होता है तो वे एक खास पौधे तक जाते हैं। चिंपाजियों का पीछा कर वैज्ञानिक आसपिलिया नाम के पौधे तक पहुंचे।
2.आसपिलिया का फायदा
इसकी खुरदुरी पत्तियां चिंपाजियों का पेट साफ करती हैं। आसपिलिया की मदद से परजीवी जल्द शरीर से बाहर निकल जाते हैं। संक्रमण भी कम होने लगता है। तंजानिया के लोग भी इस पौधे का दवा के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।
3.वंडर प्लम
काला प्लम विटेक्स डोनियाना, बंदर बड़े चाव से खाते हैं। ये सांप के जहर से लड़ता है। येलो फीवर और मासिक धर्म की दवाएं बनाने के लिए इंसान भी इसका इस्तेमाल करता है।
4.अभिभावकों से सीख
मेमना बड़ी भेड़ों को चरते हुए देखता है और काफी कुछ सीखता है। की़ड़े की शिकायत होने पर भेड़ ऐसे पौधे चरती है जिनमें टैननिन की मात्रा बहुत ज्यादा हो। तबियत ठीक होने के बाद भेड़ फिर से सामान्य घास चरने लगती है।
5.अल्कोहल की जरूरत
फ्रूट फ्लाई कही जाने वाली बहुत ही छोटी मक्खियां परजीवी से लड़ने के लिए सड़ते फलों का सहारा लेती है। फलों के खराब पर उनमें अल्कोहल बनता है। फ्रूट फ्लाई ऐसे फलों में अंडे देती हैं ताकि विषाणु और परजीवियों खुद मर जाएं।
6.समझदार गीजू
विषाणु के चलते बीमार होने पर गीजू ऐसे पौधे खाता है जिनमें एल्कोलॉयड बहुत ज्यादा हो।
7.जहरीले फूल
मोनार्क तितली अंडे देने के लिए मिल्कवीड पौधे का इस्तेमाल करती है। इसके फूल में बहुत ज्यादा कार्डेनोलिडेन होता है, जो तितली के दुश्मनों के लिए जहरीला होता है।
8.मेहनती मधुमक्खियां
मधुमक्खियां प्रोपोलिस बनाती हैं। ये शहद और प्राकृतिक मोम का मिश्रण है। यह बैक्टीरिया, विषाणु और संक्रमण से बचाता है। शहद का इस्तेमाल इंसान, बंदर, भालू और चिड़िया भी करते हैं।
9.निकोटिन वाला बसेरा
मेक्सिको की गोरैया घोंसला बनाने के लिए सिगरेट के ठुड्डों का सहारा लेने लगी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक सिग्रेट बट्स में काफी निकोटिन होता है जो परजीवियों से बचाता है। लेकिन इसके नुकसान भी हैं।
10.घास से इलाज
बिल्ली और कुत्ते प्राकृतिक रूप से शुद्ध शाकाहारी नहीं हैं। लेकिन बीमार पड़ने पर दोनों खास किस्म की घास खाते हैं। घास खाने के उनका पेट गड़बड़ा जाता है और बीमार कर रही चीज उल्टी या दस्त के साथ बाहर आ जाती है।
11.मिट्टी से संतुलन
कुआला पेड़ पौधे और छाल खाता है। लेकिन बीमार होने पर वो खाने के तुरंत बाद मिट्टी खाता है। मिट्टी खुराक के अम्लीय और क्षारीय गुणों को फीका कर देती है।
12.मच्छरों को धोखा
कापुचिन बंदरों के पास इंसान की तरह मच्छरदानी नहीं होती। लेकिन मच्छरों से बचने के लिए वो अपने शरीर पर खास गंध वाला पेस्ट रगड़ते हैं। गंध से परजीवी दूर भागते हैं।
13.क्रमिक विकास की देन
कनखजूरा खुद को एक खास तरह के जहर में लपेट लेता है। वैज्ञानिकों को लगता है जीव जंतुओं ने लाखों साल के विकास क्रम में अपनी रक्षा के लिए कई जानकारियां जुटाई और भावी पीढ़ी को दीं।
स्रोत. विज्ञान विश्व

Monday, 12 June 2017

क्यों होते है क्रिकेटर 90 के स्कोर पर आउट

कितनी ही बार क्रिकेट के मुकाबले में आपने बल्लेबाज को शतक के करीब पहुंचते ही विकेट गंवाते देखा होगा। विज्ञान कहता है कि जब शतक सामने हो तो कई खिलाड़ियों को "नर्वस नाइंटीज" का रोग लग जाता है।
आपका पसंदीदा क्रिकेटर क्रीज पर है और शानदार खेल दिखाते हुए अब शतक की ओर बढ़ रहा है। 90 का स्कोर पार करने पर आप शतक का जश्न मनाने के लिए तैयार होने लगते हैं कि तभी खिलाड़ी आउट। खिलाड़ी, उसकी टीम और खेल में दिलचस्पी रखने वाले सभी लोगों को निराशा तो होती ही है लेकिन वैज्ञानिक जानना जाहते हैं कि आखिर ऐसा होना इतना आम क्यों है। वैज्ञानिको की मानें तो इसके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं।


ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में स्थित क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिको ने पाया है कि ऐसी परिस्थिति में क्रिकेटर "नर्वस नाइंटीज" के शिकार हो जाते हैं। जब भी आशंकाओं और सावधानी का मिलाजुला भाव इन्हें घेरता है, तो नर्वस नाइंटीज पारी में अपना असर दिखाने लगता है।
1971 से 2014 के बीच हुए एकदिवसीय क्रिकेट मैचों का विस्तृत विश्लेषण किया गया। वैज्ञानिको ने पाया कि जब भी बल्लेबाज किसी बड़े स्कोर के करीब पहुंचता है, तो वह उस निकटतम जादुई नंबर तक पहुंचने तक अपनी स्ट्राइक रेट कम कर देता है। चाहे वह अर्ध शतक हो या शतक, एक बार उस जादुई नंबर तक पहुंच जाने के बाद बल्लेबाज की स्ट्राइक रेट करीब 45 प्रतिशत बढ़ जाती है। इसके अलावा विश्लेषण में यह भी पता चला कि वह बड़ा स्कोर बनाने के बाद खिलाड़ियों के आउट होने की दर भी लगभग दोगुनी हो जाती हैं।
सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड में छपी इस शोध के बारे में बताते हुए क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी की एक शाखा स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर लियोनेल पेज बताते हैं, "जाहिर है कि सभी खिलाड़ियों का एक ही साझा लक्ष्य होता है, वे है मैच जीतना। लेकिन बल्लेबाज के नाम कई निजी उपलब्धियां भी होती हैं जिनका टीम पर काफी सामित प्रभाव पड़ता है।" पेज बताते हैं कि टीम के लिए बल्लेबाज के 99 से 100 तक जाने के बीच केवल एक रन का फासला होता है, जबकि खिलाड़ी के लिए वह बहुत बड़ी बात होती है। इसके पीछे का मनोवैज्ञानिक पहलू बेहद दिलचस्प है। 100 के पास पहुंचने की उम्मीद से बल्लेबाज तनाव में आ जाते हैं। पेज कहते हैं, "शायद ये नर्वस नाइंटीज ही हैं, जिनके कारण बल्लेबाज 100 के करीब पहुंचने पर तनावग्रस्त हो जाता है और जोखिम उठाना कम कर देता है।"

भारत का भूकंपी क्षेत्र

भारत का भूकंपी क्षेत्र
भारत को पांच विभिन्न भूकंपी क्षेत्रों में बांटा गया है। इन क्षेत्रों को भूकंप की व्यापकता के घटते स्तर के अनुसार क्षेत्र I से लेकर क्षेत्र V तक वर्गीकृत किया गया है।
क्षेत्र I जहां कोई खतरा नहीं है।
क्षेत्र II जहां कम खतरा है।
क्षेत्र III जहां औसत खतरा है।
क्षेत्र IV जहां अधिक खतरा है।
क्षेत्र V जहां बहुत अधिक खतरा है।


भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंप का खतरा हर जगह अलग-अलग है। भारत को भूकंप के क्षेत्र के आधार पर चार हिस्सों जोन-2, जोन-3, जोन-4 तथा जोन-5 में बांटा गया है। जोन 2 सबसे कम खतरे वाला जोन है तथा जोन-5 को सर्वाधिक खतनाक जोन माना जाता है।
उत्तर-पूर्व के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में ही आते हैं। उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्से तथा दिल्ली जोन-4 में आते हैं। मध्य भारत अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है, जबकि दक्षिण के ज्यादातर हिस्से सीमित खतरे वाले जोन-2 में आते हैं।
हालांकि राजधानी दिल्ली में ऐसे कई इलाके हैं जो जोन-5 की तरह खतरे वाले हो सकते हैं। इस प्रकार दक्षिण राज्यों में कई स्थान ऐसे हो सकते हैं जो जोन-4 या जोन-5 जैसे खतरे वाले हो सकते हैं। दूसरे जोन-5 में भी कुछ इलाके हो सकते हैं जहां भूकंप का खतरा बहुत कम हो और वे जोन-2 की तरह कम खतरे वाले हों। भारत में लातूर (महाराष्ट्र), कच्छ (गुजरात) जम्मू-कश्मीर में बेहद भयानक भूकंप आ चुके है। इसी तरह इंडोनिशिया और फिलीपींस के समुद्र में आए भयानक भूकंप से उठी सुनामी भारत, श्रीलंका और अफ्रीका तक लाखों लोगों की जान ले चुकी है।

सुरक्षित पासवर्ड होता क्या है

सुरक्षित पासवर्ड होता क्या है?
आधुनिक जीवनशैली में पासवर्ड के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं है। मोबाइल फ़ोन से लेकर कंप्यूटर खोलने, बैंक खाता खोलने, घर के लॉक को खोलने, हर जगह पासवर्ड का इस्तेमाल होता है। हमारी निर्भरता पासवर्ड पर जितनी बढ़ती जा रही है, उतने ही हैकरों के हमले भी बढ़ रहे हैं, जो हमारी गोपनीय सूचनाओं को उड़ा ले जाते हैं। ये जानना ज़रूरी है कि पूरी दुनिया में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में 98।8 प्रतिशत वही 10,000 पासवर्ड्स का इस्तेमाल करते हैं।
हैकर छह एल्फ़ा-न्यूमैरिक(अक्षरो और अंको से मिश्रीत) के पासवर्ड को एक सैकेंड के 1000वें हिस्से में, 12 एल्फ़ा-न्यूमैरिक डिजिट के पासवर्ड को 3.21 मिनट में कंप्यूटर एलगोरिदम का इस्तेमाल करते हुए तोड़ सकते हैं।
तो फिर सुरक्षित पासवर्ड क्या है?
इसके लिए ज़रूरी है कि आपको हैकर्स के तौर तरीकों का बेहतर पता हो, ताकि आप सुरक्षा के बेहतर इंतज़ाम तलाश पाएं।
हैकर्स कैसे चुराते हैं पासवर्ड?

हैकर्स अमूमन किसी का भी पासवर्ड चुराने के लिए तीन तरीके इस्तेमाल करते हैं। वे फर्ज़ी ईमेल भेजते हैं, जिसके जरिए अचानक से अमीर होने, लाटरी खुलने जैसे लालच दिए जाते हैं। जब आप उन साइट्स पर जाते हैं तो आपको सीक्रेट कोड डालने को कहा जाता है। हैकर्स चालाकी, समझ और अनुमानों से काम लेते हैं। साईबर सुरक्षा के इस दौर में भी, दुनिया भर के लोगों में सबसे ज़्यादा PASSWORD को ही अपना पासवर्ड रख बैठते हैं। इसके बाद सबसे लोकप्रिय पासवर्ड है 123456, लेकिन हैकर्स ये सब जानते हैं।
अगर आप ये सोचते हैं कि आप अपने पालतू जानवर या घर के किसी सदस्य के नाम पर पासवर्ड रखें तो ये भी सुरक्षित नहीं होता है। क्योंकि हैकर्स आपकी फेसबुक और ट्विटर प्रोफ़ाइल के जरिए आपसे जुड़े लोगों के नाम, महत्वपूर्ण तिथियों को आसानी से जान जाते हैं।
कई लोग लोकप्रिय चलन के आधार पर अपना पासवर्ड बनाते हैं। लेकिन हैकिंग करने वालों के डाटाबेस में ऐसे कई संभावित पासवर्ड के संयोजन, आपके, आपके रिश्तेदारों के नाम और तिथियों से बनने वाले संयोजन मौजूद होते हैं।
अगर दूसरे तरीके से भी हैकिंग करने वाले कामयाब नहीं होते हैं तो वे तीसरा रास्ता अपनाते हैं। वे कंप्यूटर एलोगरिदम का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हैकरों के चुंगल से बचा नहीं जा सकता है। इसके काफ़ी आसान से उपाय हैं।
ये 5 बातें अच्छी तरह समझ लें
1. सबसे पहली बात तो ये है कि आप अपने ऑनलाइन खातों को तीन श्रेणियों में डालें- सबसे महत्वपूर्ण, जिसकी सुरक्षा सबसे ज़्यादा जरूरी है। दूसरा, जिसकी सुरक्षा थोड़ी कमतर हो सकती है और तीसरे वो ऑनलाइन ख़ाते जो बहुत महत्वपूर्ण नहीं हैं। यानी बैंक ख़ाते और ईमेल एकाउंट की सुरक्षा का स्तर अलग अलग होना चाहिए।
2. अपना पासवर्ड जितना लंबा और इधर-उधर से उठाए शब्दों, अंकों से बनाया हो, वो बेहतर है। मतलब जितने ज़्यादा शब्द हों, उतना बेहतर। क्योंकि कंप्यूटर एलोगरिदम के जरिए लंबे शब्दों के पासवर्ड को तोड़ना मुश्किल होता है। अगर आपका पासवर्ड दो शब्द का है तो ये एक शब्द के पासवर्ड के मुक़ाबले दस गुना मुश्किल है। तीन शब्द हों तो उसे तोड़ना सौ गुना ज्यादा मुश्किल है।
3. शब्दों के इस्तेमाल के अलावा अलग अलग विशेष अक्षरो(~,!,@,#,$,%,^,&,*) का इस्तेमाल भी पासवर्ड को सुरक्षित बनाता है। ख़ासकर ऐसे अक्षर जिनका आपस में कोई संबंध नहीं बनता हो। अगर आपने दस शब्दों का पासवर्ड बनाया और उसमें विशेष अक्षरो का इस्तेमाल हुआ तो उसे तोड़ने के लिए हैकरों को तीन सप्ताह से ज्यादा का समय लग सकता है।
4. हालांकि टेक विशेषज्ञों के मुताबिक अगर आपने अपना पासवर्ड 15 लेटर्स से ज़्यादा का बनाया और उसमें कैपिटल लेटर, स्माल लेटर, स्पेशल कैरेक्टर डाल दिए तो ये सबसे महफ़ूज़ है। इसके बाद ये फ़र्क नहीं पड़ता कि पासवर्ड 15 लेटर्स का है या 25 लेटर्स का, एक ही शब्द बार-बार आता है या नहीं। ऐसा पासवर्ड लंबे समय तक सुरक्षित रह सकता है। इसे बार बार बदलने की जरूरत भी नहीं होगी।
5. अब ऐसे प्रोग्राम आ रहे हैं जो आने वाले समय में आपका की-स्ट्राइक पैटर्न यानी आपके टाइपिंग स्टाइल और रिदम से आपका पासवर्ड तय करेगा, जो आप टाइप कर रहे हैं उससे नहीं। फिर तो पासवर्ड की समस्या काफ़ी हद तक हल हो ही जाएगी।
स्रोत : बी बी सी हिंदी

रेडियो कार्बन डेटिंग विधि

रेडीयो कार्बन डेटींग(Radiocarbon dating) किसी वस्तु की आयु ज्ञात करने कि विधि है, इस विधि मे रेडीयोसक्रिय कार्बन समस्थानिक के गुणधर्मो का प्रयोग किया जाता है। इस विधि की खोज 1940 मे विलियर्ड लीबी(Willard Libby) ने की थी।

इस विधि मे 14C कार्बन समस्थानिक का प्रयोग होता है जो वातावरण मे नाइट्रोजन के कास्मिक किरणो से प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न होते रहता है। यह रेडीयोसक्रिय कार्बन आक्सीजन से प्रतिक्रिया कर रेडीयो सक्रिय कार्बन डाय आक्साईड CO2 बनाता है। यह रेडीयो सक्रिय CO2, प्रकाशसंश्लेषण प्रतिक्रिया मे पौधो द्वारा अवशोषित होकर खाद्य श्रृंखला(पौधो से प्राणीयों) मे शामिल हो जाती है।
सरल शब्दो मे C14 को पेड़/पौधे वातावरण से CO2 के रूप अवशोषित करते है। प्राणीयों मे यह C14 पेड़/पौधो को फल, सब्जी, अनाज के रूप मे खाने से आता है। मांसाहारी प्राणीयों मे यह C14 शाकाहारी प्राणीयों को खाने से आता है।

जब पेड़/प्राणी की मृत्यु होती है तब वे CO2 का अवशोषण बंद कर देते है। मृत्यु के समय के पश्चात से 14C की मात्रा घटना शुरु हो जाति है क्योंकि अब 14Cरेडीयो सक्रियता के फलस्वरूप क्षय होकर वापस नाइट्रोजन 14N मे परिवर्तित हो जाता है।

अब वनस्पति/प्राणी के अवशेषो(लकड़ी/हड्डी) मे शेष 14C की मात्रा से उस प्राणी की मृत्यु के समय की गणना की जा सकती है। यह विधि 50,000 वर्ष पुराने अवशेषो तक के लिये कारगर सिद्ध हुयी है।

लिथियम Li

लिथियम (अंग्रेज़ी:Lithium) आवर्त सारणी का तृतीय तत्व है। लिथियम का प्रतीकानुसार Li तथा परमाणु संख्या 3 होती है। लिथियम का परमाणु भार 6.941 है। लिथियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s1, 2s2 होता है।
1.लिथियम चाँदी की तरह उजली धातु है।
2.लिथियम का घनत्व 0.534 होता है।
3.लिथियम मुलायम होता है एवं इसे चाकू से आसानी से काटा जा सकता है।
4.लिथियम ऊष्मा और विद्युत का सुचालक होता है।
साधारण परिस्थितियों में यह प्रकृति की सबसे हल्की धातु और सबसे कम घनत्व-वाला ठोस पदार्थ है। रासायनिक दृष्टि से यह क्षार धातु समूह का सदस्य है और अन्य क्षार धातुओं की तरह अत्यंत अभिक्रियाशील (रियेक्टिव) है, यानि अन्य पदार्थों के साथ तेज़ी से रासायनिक अभिक्रिया कर लेता है। यदी इसे हवा में रखा जाये तो यह जल्दी ही वायु में मौजूद ओक्सीजन से अभिक्रिया करने लगता है, जो इसके शीघ्र ही आग पकड़ लेने में प्रकट होता है। इस कारणवश इसे तेल में डुबो कर रखा जाता है। तेल से निकालकर इसे काटे जाने पर यह चमकीला होता है लेकिन जल्द ही पहले भूरा-सा बनकर चमक खो देता है और फिर काला होने लगता है। अपनी इस अधिक अभिक्रियाशीलता की वजह से यह प्रकृति में शुद्ध रूप में कभी नहीं मिलता बल्कि केवल अन्य तत्वों के साथ यौगिकों में ही पाया जाता है। अपने कम घनत्व के कारण लिथियम बहुत हलका होता है और धातु होने के बावजूद इसे आसानी से चाकू से काटा जा सकता है।
आम जीवन मे लिथियम का प्रयोग बैटरी के रूप मे होता है। दो प्रकार की लिथियम बैटरी प्रचलित है।
लिथियम पॉलिमर (लि-पॉली) बैटरी
लिथियम पॉलिमर (लि-पॉली) बैटरी लि-पॉली बैटरीज में सबसे नई और आधुनिक तकनिक है। इससे बैटरी अत्यंत हल्की हो जाती है, इन पर मेमोरी का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता और यह एक निकल धातु से वनी हाइब्रिड (एनआइएमएच) (जिसे आप कैमरे में प्रयोग करते हैं) के बराबर आकार के बावजूद इससे 40 फीसदी अधिक बैटरी क्षमता देती है।
"मेमोरी इफेक्ट" वह होता है जब रिचार्जेबल बैटरी अपने चार्ज साइकिल से पहले पूरी तरह से डिस्चार्ज न हुई हो; इसके चलते बैटरी न समय से पहले हुए चार्ज को "याद रखती" है जिससे इसकी केपिसिटी कम हो जाती है। डिवाइसेज जैसे कि ब्लैकबेरी प्लेबुक, सैमसंग गैलेक्सी एस3 में इसी तरह की बैटरी का इस्तेमाल होता है।
लिथियम आइओएन (लि-आइऑन) बैटरी
यह सेल फोन बैटरीज में सबसे ताजातरीन और प्रचलित टेक्नोलॉजी है। लिथियम आइऑन सेल फोन बैटरी का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि वो महंगी होती हैं। हालांकि, इनमें लि-पॉलिमर के मुकाबले ज्यादा ऊर्जा संग्रहीत होती है।
लि-आइऑन और लि-पॉलिमर बैटरीयों में एक जैसी रासायनिक संरचना होती है लेकिन इसके ज्यादा गर्म होने की प्रवृत्ति में अंतर होता है। इसी कारण, लिथियम आइऑन बैटरी में एक्टिव प्रोटेक्शन सर्किट होता है- जो ऑनबोर्ड कम्पयूटर में जरूरी होता है- इससे बैटरी के ज्यादा गर्म होने पर और धमाके से आग लग जाने से बचाव होता है।
लिथियम पॉलिमर बैटरियों को एक्टिव प्रोटेक्शन सर्किट की जरूरत नहीं होती, इसी के चलते इनका निर्माण एक क्रेडिट कार्ड के साइज में भी हो सकता है।

पॉलीग्राफिक टेस्ट

पॉलीग्राफ़िक टेस्ट झूठ पकड़ने वाली तकनीक है जिसमें आदमी की बातचीत के कई ग्राफ़ एक साथ बनते हैं और इससे हर संभावित झूठ को पकड़ने की कोशिश की जाती है।
दूसरा तरीक़ा होता है ट्रुथ सीरम या नार्को टेस्ट का इस्तेमाल। इसमें उस आदमी को एक दवा (जैसे सोडियम पेंटाथॉल) दी जाती है। इससे अभियुक्त बेहोशी की हालत में बात करता है और सच बातें उगल देता है।
पॉलीग्राफ़िक टेस्ट को विशेषज्ञ करते हैं और वही नतीजों का विश्लेषण करते हैं। लेकिन ये कैसे पता चलता है कि जिस इंसान की जांच हो रही है वो सच बोल रहा है या झूठ?

असल में जिस इंसान पर टेस्ट होना है उसकी धड़कन, सांस और रक्तचाप के उतार चढ़ाव को ग्राफ़ के रूप में दर्ज किया जाता है। शुरू में नाम, उम्र और पता पूछा जाता है और इसके बाद अचानक उस विशेष दिन की घटना के बारे में पूछ लिया जाता है। इस अचानक सवाल से उस इंसान पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है और ग्राफ़ में बदलाव दिखता है। अगर बदलाव नहीं आता है तो इसका मतलब है कि वो सच बोल रहा है। इस तरह से उस व्यक्ति से 11 सवाल पूछे जाते हैं जिनमें चार या पांच उस घटना से संबंधित होते हैं।
जिन जिन सवालों पर ग्राफ़ में बदलाव आता है, उसका विशेषज्ञ विश्लेषण करते हैं।लेकिन अगर इसमें विशेषज्ञता नहीं है तो इससे ग़लत नतीजे भी निकल सकते हैं। इसीलिए अनुभवी विशेषज्ञों द्वारा ही इसे कराया जाना चाहिए। अगर किसी खास घटना के बारे में कोई सबूत है और पॉलीग्राफ़ी टेस्ट में झूठ बोला गया है तो वहीं उसका झूठ पकड़ा जाता है। और इसे कोर्ट में मान भी लिया जाता है।
अधिक मानसिक दृढ़ता वाले व्यक्तियों पर ये टेस्ट फेल भी हो सकता है इसलिए इसकी 100% वैद्यता की पुष्टि नहीं की जा सकती है। क्योंकि मनुष्य की मानसिक क्षमता अधभुत होती है और वह परिस्थितियों के हिसाब से इसमें अनपेक्षित बदलाव भी कर सकता है, वह इस प्रकार की परिस्थितियों से गुजरने के लिए पहले से भी तैयार हो सकता है या फिर मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण भी ले सकता है। ऐसे में विचारणीय बिंदु यह है कि आजकल आदतन अपराधी और आतंकवादी को इससे गुजरने का और बिना पकड़े जाये सफाई से झूठ बोलकर चीजो में उलझाने वाली नई दिशाओं को पैदा करने का प्रशिक्षण अवश्य दिया जाता होगा, जिससे पूछताछ एजेंसी को गुमराह किया जा सके। इसलिए इस सिद्धांत में मनोवैज्ञानिकता और विज्ञान का सामंजस्य बिठाते हुए नई तकनिकी विकसित करने की आश्यकता हैं।

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