Friday, 23 June 2017

रसायन शास्त्र

लवण (Salt):-
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अम्ल एवं भस्म की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप लवण बनता है। इसमें लवण के अलावा जल का भी निर्माण होता है।
लवणों का उपयोग [Uses]:-
✔ खाने का सोडा या बेकिंग सोडा या सोडियम बाईकार्बोरेट (NaHCO3) का बेकिंग पाउण्डर के रूप में, पेट की अम्लीयता को दूर करने में एवं अग्निनाशक यंत्रों में उपयोग होता है।
साधारण नमक अर्थात् सोडियम क्लोराइड (NaCl) का खाने में, अचार के परिरक्षण तथा मांस एवं मछली के संरक्षण (Preservation) में उपयोग किया जाता है।
कास्टिक सोडा या सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) का अपमार्जक का चूर्ण बनाने में उपयोग होता है।
धोवन सोडा या सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3 ) का उपयोग कपड़े धोने में होता है।
पोटेशियम नाइट्रेट या शोरा (KNO3) का बारूद बनाने में एवं उर्वरक के रूप में उपयोग होता है। पोटेशियम नाइट्रेट को साल्टपीटर (Saltpeter) भी कहते है।
काॅपर सल्फेट का उपयोग विद्युत लेपन में एवं रंगाईछपाई में होता है।

भस्म (Base):-
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ऐसा यौगिक जो अम्ल से प्रतिक्रिया कर लवण एवं जल देता हो, जिसमें प्रोटाॅन ग्रहण करने की प्रवृत्ति हो एवं जल में घुलने से हाइड्राॅक्सिल आयन (OH-) देता हो, भस्म [Bases] कहलाता है।
भस्म स्वाद में कड़वा होता है तथा यह लाल लिट्मस को नीला कर देता है।
भस्मों का उपयोग [Uses]:-
दैनिक जीवन में कैल्शियम हाइड्राक्साइड [Ca(OH)2] का इस्तेमाल घरों में चूना पोतने में, गारा एवं प्लास्टर बनाने में, मिट्टी की अम्लीयता दूर करने में, ब्लीचिंग पाउण्डर बनाने में, जल को मृदु बनाने में तथा जलने पर मरहम-पट्टी करने में किया जाता है।
कास्टिक सोडा (NaOH) का साबुन बनाने, पेट्रोलियम साफ करने, कपड़ा एवं कागज बनाने आदि में किया जाता है।
✔ खाली चूना (CaO) का मकान बनाने में गारा के रूप में, शीशा तथा ब्लीचिंग पाउडर बनाने में किया जाता है।
पेट की अम्लीयता को दूर करने में मिल्क आॅफ मैग्नेशिया या मैग्नेशियम हाइड्राॅक्साइड Mg(OH)2 का प्रयोग होता है।

अम्ल (Acid):-
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ऐसा यौगिक जो जल में घुलकर हाइड्रोजन (H+) आयन देता है तथा जो किसी दूसरे पदार्थ को प्रोटाॅन प्रदान करने की क्षमता रखता है, अम्ल (Acid) कहलाता है। अम्ल स्वाद में खट्टे होते है तथा अम्ल का जलीय विलयन नीले लिट्मस पेपर को लाल कर देता है।
अम्लों का प्रयोग [Uses]:-
दैनिक जीवन में खाने के काम में, जैसेः- अंगूर में टार्टरिक अम्ल के रूप में, नीबू एवं नारंगी में- साइट्रिक अम्ल, चीनी में- फार्मिक अम्ल, सिरका एवं अचार में- एसीटिक अम्ल, खट्टे दूध में- लैक्टिक अम्ल, सेब में- मैलिक अम्ल, सोडावाटर एवं अन्य पेय पदार्थो में- कार्बनिक अम्ल के रूप में पाया जाता है।
आॅक्जैलिक अम्ल का प्रयोग कपड़े सेजंग के धब्बे हटाने में तथा फोटोग्राफी में किया जाता है।
H2SO4 एवं HNO3 का प्रयोग विस्फोटकों, उर्वरकों, दवाओं को बनाने तथा लोहे को साफ करने में आदि में होता है।
✔ सोना एवं चाँदी के शुद्धीकरण में नाइट्रिक अम्ल का प्रयोग किया जाता है।
✔ खाना पचाने में HCL अम्ल का प्रयोग होता है।

कैसे अपना ईलाज करते है जानवर

आपने कुत्ते और बिल्ली को घास खाते देखा होगा। बीमार होने पर वो ऐसा करते हैं। और भी कई जीव ऐसे ही अपना प्राकृतिक इलाज करते हैं। उनका सहज ज्ञान इंसान के लिए भी फायदेमंद हो सकता है।
1.परजीवियों से बचाव
चिंपाजी जब विषाणुओं के संक्रमण से बीमार होते हैं या फिर उन्हें डायरिया या मलेरिया होता है तो वे एक खास पौधे तक जाते हैं। चिंपाजियों का पीछा कर वैज्ञानिक आसपिलिया नाम के पौधे तक पहुंचे।
2.आसपिलिया का फायदा
इसकी खुरदुरी पत्तियां चिंपाजियों का पेट साफ करती हैं। आसपिलिया की मदद से परजीवी जल्द शरीर से बाहर निकल जाते हैं। संक्रमण भी कम होने लगता है। तंजानिया के लोग भी इस पौधे का दवा के तौर पर इस्तेमाल करते हैं।
3.वंडर प्लम
काला प्लम विटेक्स डोनियाना, बंदर बड़े चाव से खाते हैं। ये सांप के जहर से लड़ता है। येलो फीवर और मासिक धर्म की दवाएं बनाने के लिए इंसान भी इसका इस्तेमाल करता है।
4.अभिभावकों से सीख
मेमना बड़ी भेड़ों को चरते हुए देखता है और काफी कुछ सीखता है। की़ड़े की शिकायत होने पर भेड़ ऐसे पौधे चरती है जिनमें टैननिन की मात्रा बहुत ज्यादा हो। तबियत ठीक होने के बाद भेड़ फिर से सामान्य घास चरने लगती है।
5.अल्कोहल की जरूरत
फ्रूट फ्लाई कही जाने वाली बहुत ही छोटी मक्खियां परजीवी से लड़ने के लिए सड़ते फलों का सहारा लेती है। फलों के खराब पर उनमें अल्कोहल बनता है। फ्रूट फ्लाई ऐसे फलों में अंडे देती हैं ताकि विषाणु और परजीवियों खुद मर जाएं।
6.समझदार गीजू
विषाणु के चलते बीमार होने पर गीजू ऐसे पौधे खाता है जिनमें एल्कोलॉयड बहुत ज्यादा हो।
7.जहरीले फूल
मोनार्क तितली अंडे देने के लिए मिल्कवीड पौधे का इस्तेमाल करती है। इसके फूल में बहुत ज्यादा कार्डेनोलिडेन होता है, जो तितली के दुश्मनों के लिए जहरीला होता है।
8.मेहनती मधुमक्खियां
मधुमक्खियां प्रोपोलिस बनाती हैं। ये शहद और प्राकृतिक मोम का मिश्रण है। यह बैक्टीरिया, विषाणु और संक्रमण से बचाता है। शहद का इस्तेमाल इंसान, बंदर, भालू और चिड़िया भी करते हैं।
9.निकोटिन वाला बसेरा
मेक्सिको की गोरैया घोंसला बनाने के लिए सिगरेट के ठुड्डों का सहारा लेने लगी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक सिग्रेट बट्स में काफी निकोटिन होता है जो परजीवियों से बचाता है। लेकिन इसके नुकसान भी हैं।
10.घास से इलाज
बिल्ली और कुत्ते प्राकृतिक रूप से शुद्ध शाकाहारी नहीं हैं। लेकिन बीमार पड़ने पर दोनों खास किस्म की घास खाते हैं। घास खाने के उनका पेट गड़बड़ा जाता है और बीमार कर रही चीज उल्टी या दस्त के साथ बाहर आ जाती है।
11.मिट्टी से संतुलन
कुआला पेड़ पौधे और छाल खाता है। लेकिन बीमार होने पर वो खाने के तुरंत बाद मिट्टी खाता है। मिट्टी खुराक के अम्लीय और क्षारीय गुणों को फीका कर देती है।
12.मच्छरों को धोखा
कापुचिन बंदरों के पास इंसान की तरह मच्छरदानी नहीं होती। लेकिन मच्छरों से बचने के लिए वो अपने शरीर पर खास गंध वाला पेस्ट रगड़ते हैं। गंध से परजीवी दूर भागते हैं।
13.क्रमिक विकास की देन
कनखजूरा खुद को एक खास तरह के जहर में लपेट लेता है। वैज्ञानिकों को लगता है जीव जंतुओं ने लाखों साल के विकास क्रम में अपनी रक्षा के लिए कई जानकारियां जुटाई और भावी पीढ़ी को दीं।
स्रोत. विज्ञान विश्व

Monday, 12 June 2017

क्यों होते है क्रिकेटर 90 के स्कोर पर आउट

कितनी ही बार क्रिकेट के मुकाबले में आपने बल्लेबाज को शतक के करीब पहुंचते ही विकेट गंवाते देखा होगा। विज्ञान कहता है कि जब शतक सामने हो तो कई खिलाड़ियों को "नर्वस नाइंटीज" का रोग लग जाता है।
आपका पसंदीदा क्रिकेटर क्रीज पर है और शानदार खेल दिखाते हुए अब शतक की ओर बढ़ रहा है। 90 का स्कोर पार करने पर आप शतक का जश्न मनाने के लिए तैयार होने लगते हैं कि तभी खिलाड़ी आउट। खिलाड़ी, उसकी टीम और खेल में दिलचस्पी रखने वाले सभी लोगों को निराशा तो होती ही है लेकिन वैज्ञानिक जानना जाहते हैं कि आखिर ऐसा होना इतना आम क्यों है। वैज्ञानिको की मानें तो इसके पीछे वैज्ञानिक कारण हैं।


ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में स्थित क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिको ने पाया है कि ऐसी परिस्थिति में क्रिकेटर "नर्वस नाइंटीज" के शिकार हो जाते हैं। जब भी आशंकाओं और सावधानी का मिलाजुला भाव इन्हें घेरता है, तो नर्वस नाइंटीज पारी में अपना असर दिखाने लगता है।
1971 से 2014 के बीच हुए एकदिवसीय क्रिकेट मैचों का विस्तृत विश्लेषण किया गया। वैज्ञानिको ने पाया कि जब भी बल्लेबाज किसी बड़े स्कोर के करीब पहुंचता है, तो वह उस निकटतम जादुई नंबर तक पहुंचने तक अपनी स्ट्राइक रेट कम कर देता है। चाहे वह अर्ध शतक हो या शतक, एक बार उस जादुई नंबर तक पहुंच जाने के बाद बल्लेबाज की स्ट्राइक रेट करीब 45 प्रतिशत बढ़ जाती है। इसके अलावा विश्लेषण में यह भी पता चला कि वह बड़ा स्कोर बनाने के बाद खिलाड़ियों के आउट होने की दर भी लगभग दोगुनी हो जाती हैं।
सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड में छपी इस शोध के बारे में बताते हुए क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी की एक शाखा स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर लियोनेल पेज बताते हैं, "जाहिर है कि सभी खिलाड़ियों का एक ही साझा लक्ष्य होता है, वे है मैच जीतना। लेकिन बल्लेबाज के नाम कई निजी उपलब्धियां भी होती हैं जिनका टीम पर काफी सामित प्रभाव पड़ता है।" पेज बताते हैं कि टीम के लिए बल्लेबाज के 99 से 100 तक जाने के बीच केवल एक रन का फासला होता है, जबकि खिलाड़ी के लिए वह बहुत बड़ी बात होती है। इसके पीछे का मनोवैज्ञानिक पहलू बेहद दिलचस्प है। 100 के पास पहुंचने की उम्मीद से बल्लेबाज तनाव में आ जाते हैं। पेज कहते हैं, "शायद ये नर्वस नाइंटीज ही हैं, जिनके कारण बल्लेबाज 100 के करीब पहुंचने पर तनावग्रस्त हो जाता है और जोखिम उठाना कम कर देता है।"

भारत का भूकंपी क्षेत्र

भारत का भूकंपी क्षेत्र
भारत को पांच विभिन्न भूकंपी क्षेत्रों में बांटा गया है। इन क्षेत्रों को भूकंप की व्यापकता के घटते स्तर के अनुसार क्षेत्र I से लेकर क्षेत्र V तक वर्गीकृत किया गया है।
क्षेत्र I जहां कोई खतरा नहीं है।
क्षेत्र II जहां कम खतरा है।
क्षेत्र III जहां औसत खतरा है।
क्षेत्र IV जहां अधिक खतरा है।
क्षेत्र V जहां बहुत अधिक खतरा है।


भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंप का खतरा हर जगह अलग-अलग है। भारत को भूकंप के क्षेत्र के आधार पर चार हिस्सों जोन-2, जोन-3, जोन-4 तथा जोन-5 में बांटा गया है। जोन 2 सबसे कम खतरे वाला जोन है तथा जोन-5 को सर्वाधिक खतनाक जोन माना जाता है।
उत्तर-पूर्व के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में ही आते हैं। उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्से तथा दिल्ली जोन-4 में आते हैं। मध्य भारत अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है, जबकि दक्षिण के ज्यादातर हिस्से सीमित खतरे वाले जोन-2 में आते हैं।
हालांकि राजधानी दिल्ली में ऐसे कई इलाके हैं जो जोन-5 की तरह खतरे वाले हो सकते हैं। इस प्रकार दक्षिण राज्यों में कई स्थान ऐसे हो सकते हैं जो जोन-4 या जोन-5 जैसे खतरे वाले हो सकते हैं। दूसरे जोन-5 में भी कुछ इलाके हो सकते हैं जहां भूकंप का खतरा बहुत कम हो और वे जोन-2 की तरह कम खतरे वाले हों। भारत में लातूर (महाराष्ट्र), कच्छ (गुजरात) जम्मू-कश्मीर में बेहद भयानक भूकंप आ चुके है। इसी तरह इंडोनिशिया और फिलीपींस के समुद्र में आए भयानक भूकंप से उठी सुनामी भारत, श्रीलंका और अफ्रीका तक लाखों लोगों की जान ले चुकी है।

सुरक्षित पासवर्ड होता क्या है

सुरक्षित पासवर्ड होता क्या है?
आधुनिक जीवनशैली में पासवर्ड के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं है। मोबाइल फ़ोन से लेकर कंप्यूटर खोलने, बैंक खाता खोलने, घर के लॉक को खोलने, हर जगह पासवर्ड का इस्तेमाल होता है। हमारी निर्भरता पासवर्ड पर जितनी बढ़ती जा रही है, उतने ही हैकरों के हमले भी बढ़ रहे हैं, जो हमारी गोपनीय सूचनाओं को उड़ा ले जाते हैं। ये जानना ज़रूरी है कि पूरी दुनिया में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में 98।8 प्रतिशत वही 10,000 पासवर्ड्स का इस्तेमाल करते हैं।
हैकर छह एल्फ़ा-न्यूमैरिक(अक्षरो और अंको से मिश्रीत) के पासवर्ड को एक सैकेंड के 1000वें हिस्से में, 12 एल्फ़ा-न्यूमैरिक डिजिट के पासवर्ड को 3.21 मिनट में कंप्यूटर एलगोरिदम का इस्तेमाल करते हुए तोड़ सकते हैं।
तो फिर सुरक्षित पासवर्ड क्या है?
इसके लिए ज़रूरी है कि आपको हैकर्स के तौर तरीकों का बेहतर पता हो, ताकि आप सुरक्षा के बेहतर इंतज़ाम तलाश पाएं।
हैकर्स कैसे चुराते हैं पासवर्ड?

हैकर्स अमूमन किसी का भी पासवर्ड चुराने के लिए तीन तरीके इस्तेमाल करते हैं। वे फर्ज़ी ईमेल भेजते हैं, जिसके जरिए अचानक से अमीर होने, लाटरी खुलने जैसे लालच दिए जाते हैं। जब आप उन साइट्स पर जाते हैं तो आपको सीक्रेट कोड डालने को कहा जाता है। हैकर्स चालाकी, समझ और अनुमानों से काम लेते हैं। साईबर सुरक्षा के इस दौर में भी, दुनिया भर के लोगों में सबसे ज़्यादा PASSWORD को ही अपना पासवर्ड रख बैठते हैं। इसके बाद सबसे लोकप्रिय पासवर्ड है 123456, लेकिन हैकर्स ये सब जानते हैं।
अगर आप ये सोचते हैं कि आप अपने पालतू जानवर या घर के किसी सदस्य के नाम पर पासवर्ड रखें तो ये भी सुरक्षित नहीं होता है। क्योंकि हैकर्स आपकी फेसबुक और ट्विटर प्रोफ़ाइल के जरिए आपसे जुड़े लोगों के नाम, महत्वपूर्ण तिथियों को आसानी से जान जाते हैं।
कई लोग लोकप्रिय चलन के आधार पर अपना पासवर्ड बनाते हैं। लेकिन हैकिंग करने वालों के डाटाबेस में ऐसे कई संभावित पासवर्ड के संयोजन, आपके, आपके रिश्तेदारों के नाम और तिथियों से बनने वाले संयोजन मौजूद होते हैं।
अगर दूसरे तरीके से भी हैकिंग करने वाले कामयाब नहीं होते हैं तो वे तीसरा रास्ता अपनाते हैं। वे कंप्यूटर एलोगरिदम का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हैकरों के चुंगल से बचा नहीं जा सकता है। इसके काफ़ी आसान से उपाय हैं।
ये 5 बातें अच्छी तरह समझ लें
1. सबसे पहली बात तो ये है कि आप अपने ऑनलाइन खातों को तीन श्रेणियों में डालें- सबसे महत्वपूर्ण, जिसकी सुरक्षा सबसे ज़्यादा जरूरी है। दूसरा, जिसकी सुरक्षा थोड़ी कमतर हो सकती है और तीसरे वो ऑनलाइन ख़ाते जो बहुत महत्वपूर्ण नहीं हैं। यानी बैंक ख़ाते और ईमेल एकाउंट की सुरक्षा का स्तर अलग अलग होना चाहिए।
2. अपना पासवर्ड जितना लंबा और इधर-उधर से उठाए शब्दों, अंकों से बनाया हो, वो बेहतर है। मतलब जितने ज़्यादा शब्द हों, उतना बेहतर। क्योंकि कंप्यूटर एलोगरिदम के जरिए लंबे शब्दों के पासवर्ड को तोड़ना मुश्किल होता है। अगर आपका पासवर्ड दो शब्द का है तो ये एक शब्द के पासवर्ड के मुक़ाबले दस गुना मुश्किल है। तीन शब्द हों तो उसे तोड़ना सौ गुना ज्यादा मुश्किल है।
3. शब्दों के इस्तेमाल के अलावा अलग अलग विशेष अक्षरो(~,!,@,#,$,%,^,&,*) का इस्तेमाल भी पासवर्ड को सुरक्षित बनाता है। ख़ासकर ऐसे अक्षर जिनका आपस में कोई संबंध नहीं बनता हो। अगर आपने दस शब्दों का पासवर्ड बनाया और उसमें विशेष अक्षरो का इस्तेमाल हुआ तो उसे तोड़ने के लिए हैकरों को तीन सप्ताह से ज्यादा का समय लग सकता है।
4. हालांकि टेक विशेषज्ञों के मुताबिक अगर आपने अपना पासवर्ड 15 लेटर्स से ज़्यादा का बनाया और उसमें कैपिटल लेटर, स्माल लेटर, स्पेशल कैरेक्टर डाल दिए तो ये सबसे महफ़ूज़ है। इसके बाद ये फ़र्क नहीं पड़ता कि पासवर्ड 15 लेटर्स का है या 25 लेटर्स का, एक ही शब्द बार-बार आता है या नहीं। ऐसा पासवर्ड लंबे समय तक सुरक्षित रह सकता है। इसे बार बार बदलने की जरूरत भी नहीं होगी।
5. अब ऐसे प्रोग्राम आ रहे हैं जो आने वाले समय में आपका की-स्ट्राइक पैटर्न यानी आपके टाइपिंग स्टाइल और रिदम से आपका पासवर्ड तय करेगा, जो आप टाइप कर रहे हैं उससे नहीं। फिर तो पासवर्ड की समस्या काफ़ी हद तक हल हो ही जाएगी।
स्रोत : बी बी सी हिंदी

रेडियो कार्बन डेटिंग विधि

रेडीयो कार्बन डेटींग(Radiocarbon dating) किसी वस्तु की आयु ज्ञात करने कि विधि है, इस विधि मे रेडीयोसक्रिय कार्बन समस्थानिक के गुणधर्मो का प्रयोग किया जाता है। इस विधि की खोज 1940 मे विलियर्ड लीबी(Willard Libby) ने की थी।

इस विधि मे 14C कार्बन समस्थानिक का प्रयोग होता है जो वातावरण मे नाइट्रोजन के कास्मिक किरणो से प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न होते रहता है। यह रेडीयोसक्रिय कार्बन आक्सीजन से प्रतिक्रिया कर रेडीयो सक्रिय कार्बन डाय आक्साईड CO2 बनाता है। यह रेडीयो सक्रिय CO2, प्रकाशसंश्लेषण प्रतिक्रिया मे पौधो द्वारा अवशोषित होकर खाद्य श्रृंखला(पौधो से प्राणीयों) मे शामिल हो जाती है।
सरल शब्दो मे C14 को पेड़/पौधे वातावरण से CO2 के रूप अवशोषित करते है। प्राणीयों मे यह C14 पेड़/पौधो को फल, सब्जी, अनाज के रूप मे खाने से आता है। मांसाहारी प्राणीयों मे यह C14 शाकाहारी प्राणीयों को खाने से आता है।

जब पेड़/प्राणी की मृत्यु होती है तब वे CO2 का अवशोषण बंद कर देते है। मृत्यु के समय के पश्चात से 14C की मात्रा घटना शुरु हो जाति है क्योंकि अब 14Cरेडीयो सक्रियता के फलस्वरूप क्षय होकर वापस नाइट्रोजन 14N मे परिवर्तित हो जाता है।

अब वनस्पति/प्राणी के अवशेषो(लकड़ी/हड्डी) मे शेष 14C की मात्रा से उस प्राणी की मृत्यु के समय की गणना की जा सकती है। यह विधि 50,000 वर्ष पुराने अवशेषो तक के लिये कारगर सिद्ध हुयी है।

लिथियम Li

लिथियम (अंग्रेज़ी:Lithium) आवर्त सारणी का तृतीय तत्व है। लिथियम का प्रतीकानुसार Li तथा परमाणु संख्या 3 होती है। लिथियम का परमाणु भार 6.941 है। लिथियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s1, 2s2 होता है।
1.लिथियम चाँदी की तरह उजली धातु है।
2.लिथियम का घनत्व 0.534 होता है।
3.लिथियम मुलायम होता है एवं इसे चाकू से आसानी से काटा जा सकता है।
4.लिथियम ऊष्मा और विद्युत का सुचालक होता है।
साधारण परिस्थितियों में यह प्रकृति की सबसे हल्की धातु और सबसे कम घनत्व-वाला ठोस पदार्थ है। रासायनिक दृष्टि से यह क्षार धातु समूह का सदस्य है और अन्य क्षार धातुओं की तरह अत्यंत अभिक्रियाशील (रियेक्टिव) है, यानि अन्य पदार्थों के साथ तेज़ी से रासायनिक अभिक्रिया कर लेता है। यदी इसे हवा में रखा जाये तो यह जल्दी ही वायु में मौजूद ओक्सीजन से अभिक्रिया करने लगता है, जो इसके शीघ्र ही आग पकड़ लेने में प्रकट होता है। इस कारणवश इसे तेल में डुबो कर रखा जाता है। तेल से निकालकर इसे काटे जाने पर यह चमकीला होता है लेकिन जल्द ही पहले भूरा-सा बनकर चमक खो देता है और फिर काला होने लगता है। अपनी इस अधिक अभिक्रियाशीलता की वजह से यह प्रकृति में शुद्ध रूप में कभी नहीं मिलता बल्कि केवल अन्य तत्वों के साथ यौगिकों में ही पाया जाता है। अपने कम घनत्व के कारण लिथियम बहुत हलका होता है और धातु होने के बावजूद इसे आसानी से चाकू से काटा जा सकता है।
आम जीवन मे लिथियम का प्रयोग बैटरी के रूप मे होता है। दो प्रकार की लिथियम बैटरी प्रचलित है।
लिथियम पॉलिमर (लि-पॉली) बैटरी
लिथियम पॉलिमर (लि-पॉली) बैटरी लि-पॉली बैटरीज में सबसे नई और आधुनिक तकनिक है। इससे बैटरी अत्यंत हल्की हो जाती है, इन पर मेमोरी का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता और यह एक निकल धातु से वनी हाइब्रिड (एनआइएमएच) (जिसे आप कैमरे में प्रयोग करते हैं) के बराबर आकार के बावजूद इससे 40 फीसदी अधिक बैटरी क्षमता देती है।
"मेमोरी इफेक्ट" वह होता है जब रिचार्जेबल बैटरी अपने चार्ज साइकिल से पहले पूरी तरह से डिस्चार्ज न हुई हो; इसके चलते बैटरी न समय से पहले हुए चार्ज को "याद रखती" है जिससे इसकी केपिसिटी कम हो जाती है। डिवाइसेज जैसे कि ब्लैकबेरी प्लेबुक, सैमसंग गैलेक्सी एस3 में इसी तरह की बैटरी का इस्तेमाल होता है।
लिथियम आइओएन (लि-आइऑन) बैटरी
यह सेल फोन बैटरीज में सबसे ताजातरीन और प्रचलित टेक्नोलॉजी है। लिथियम आइऑन सेल फोन बैटरी का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि वो महंगी होती हैं। हालांकि, इनमें लि-पॉलिमर के मुकाबले ज्यादा ऊर्जा संग्रहीत होती है।
लि-आइऑन और लि-पॉलिमर बैटरीयों में एक जैसी रासायनिक संरचना होती है लेकिन इसके ज्यादा गर्म होने की प्रवृत्ति में अंतर होता है। इसी कारण, लिथियम आइऑन बैटरी में एक्टिव प्रोटेक्शन सर्किट होता है- जो ऑनबोर्ड कम्पयूटर में जरूरी होता है- इससे बैटरी के ज्यादा गर्म होने पर और धमाके से आग लग जाने से बचाव होता है।
लिथियम पॉलिमर बैटरियों को एक्टिव प्रोटेक्शन सर्किट की जरूरत नहीं होती, इसी के चलते इनका निर्माण एक क्रेडिट कार्ड के साइज में भी हो सकता है।

पॉलीग्राफिक टेस्ट

पॉलीग्राफ़िक टेस्ट झूठ पकड़ने वाली तकनीक है जिसमें आदमी की बातचीत के कई ग्राफ़ एक साथ बनते हैं और इससे हर संभावित झूठ को पकड़ने की कोशिश की जाती है।
दूसरा तरीक़ा होता है ट्रुथ सीरम या नार्को टेस्ट का इस्तेमाल। इसमें उस आदमी को एक दवा (जैसे सोडियम पेंटाथॉल) दी जाती है। इससे अभियुक्त बेहोशी की हालत में बात करता है और सच बातें उगल देता है।
पॉलीग्राफ़िक टेस्ट को विशेषज्ञ करते हैं और वही नतीजों का विश्लेषण करते हैं। लेकिन ये कैसे पता चलता है कि जिस इंसान की जांच हो रही है वो सच बोल रहा है या झूठ?

असल में जिस इंसान पर टेस्ट होना है उसकी धड़कन, सांस और रक्तचाप के उतार चढ़ाव को ग्राफ़ के रूप में दर्ज किया जाता है। शुरू में नाम, उम्र और पता पूछा जाता है और इसके बाद अचानक उस विशेष दिन की घटना के बारे में पूछ लिया जाता है। इस अचानक सवाल से उस इंसान पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है और ग्राफ़ में बदलाव दिखता है। अगर बदलाव नहीं आता है तो इसका मतलब है कि वो सच बोल रहा है। इस तरह से उस व्यक्ति से 11 सवाल पूछे जाते हैं जिनमें चार या पांच उस घटना से संबंधित होते हैं।
जिन जिन सवालों पर ग्राफ़ में बदलाव आता है, उसका विशेषज्ञ विश्लेषण करते हैं।लेकिन अगर इसमें विशेषज्ञता नहीं है तो इससे ग़लत नतीजे भी निकल सकते हैं। इसीलिए अनुभवी विशेषज्ञों द्वारा ही इसे कराया जाना चाहिए। अगर किसी खास घटना के बारे में कोई सबूत है और पॉलीग्राफ़ी टेस्ट में झूठ बोला गया है तो वहीं उसका झूठ पकड़ा जाता है। और इसे कोर्ट में मान भी लिया जाता है।
अधिक मानसिक दृढ़ता वाले व्यक्तियों पर ये टेस्ट फेल भी हो सकता है इसलिए इसकी 100% वैद्यता की पुष्टि नहीं की जा सकती है। क्योंकि मनुष्य की मानसिक क्षमता अधभुत होती है और वह परिस्थितियों के हिसाब से इसमें अनपेक्षित बदलाव भी कर सकता है, वह इस प्रकार की परिस्थितियों से गुजरने के लिए पहले से भी तैयार हो सकता है या फिर मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण भी ले सकता है। ऐसे में विचारणीय बिंदु यह है कि आजकल आदतन अपराधी और आतंकवादी को इससे गुजरने का और बिना पकड़े जाये सफाई से झूठ बोलकर चीजो में उलझाने वाली नई दिशाओं को पैदा करने का प्रशिक्षण अवश्य दिया जाता होगा, जिससे पूछताछ एजेंसी को गुमराह किया जा सके। इसलिए इस सिद्धांत में मनोवैज्ञानिकता और विज्ञान का सामंजस्य बिठाते हुए नई तकनिकी विकसित करने की आश्यकता हैं।

सोडियम Na

सोडियम (Sodium ; संकेत, Na) एक रासायनिक तत्त्व है। यह आवर्त सारणी के प्रथम मुख्य समूह का दूसरा तत्व है। इस समूह में में धातुगण विद्यमान हैं। इसके एक स्थिरसमस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 23) और चार रेडियोसक्रिय समस्थानिक (द्रव्यमन संख्या 21,22,23,24) ज्ञात हैं।

सोडियम धातु का निष्कर्षण कास्टनर विधि द्वारा द्रविण सोडियम हाइड्रॉक्साइड के वैद्युत् अपघटन से किया जाता है। सोडियम चाँदी के समान सफ़ेद धातु है। सोडियम मुलायम होता है एवं इसे चाकू से आसानी से काटा जा सकता है। सोडियम का आपेक्षित घनत्व 0.97 होता है। पानी से हल्का होने के कारण यह पानी पर तैरने लगता है। सोडियम विद्युत का सुचालक होता है। सोडियम धातु बेंजीन तथा ईथन में विलेय होता है।
अत्यंत ही क्रियाशील तत्व होने के कारण यह मुक्त अवस्था में नहीं पाया जाता है। संयुक्त अवस्था में यह पर्याप्त मात्रा में क्लोराइड, नाइट्रेट, कार्बोनेट, बोरेट और सल्फेट के रूप में पाया जाता है।
सोडियम रुपहली चमकदार धातु है। वायु में ऑक्सीकरण के कारण इसपर शीघ्र ही परत जम जाती है। यह नरम धातु है तथा उत्तम विद्युत चालक है क्योंकि इसके परमाणु के बाहरी कक्ष का इलेक्ट्रान अत्यंत गतिशील होने के कारण शीघ्र एक से दूसरे परमाणु पर जा सकता है। इसके कुछ भौतिक स्थिरांक नीचे दिये गये हैं-
परमाणु संख्या 11,
परमाणु भार 22.99
घनत्व 0.97 ग्राम/घन सेमी,
गलनांक 97.8 °C
क्वथनांक 892 °C
सोडयम धातु के परमाणु अपना एक इलेक्ट्रॉन खोकर सोडियम आयन में सरलता से परिणत हो जाते हैं। फलत: सोडियम अत्यंत शक्तिशाली अपचायक (reductant) है। इसकी क्रियाशीलता के कारण इसे निर्वात या तैल में रखते हैं। जल से यह विस्फोट के साथ क्रिया कर हाइड्रोजन मुक्त करता है। वायु में यह पीली लपट के साथ जलकर सोडियम आक्साइड (Na2O) तथा सोडियम परआक्साइड (Na2O2) का मिश्रण बनाता है।
हेलोजन तत्व तथा फॉस्फोरस के साथ सोडियम क्रिया करता है। विशुद्ध अमोनिया द्रव में सोडियम घुलकर नीला विलयन देता है। पारद से मिलकर यह ठोस मिश्रधातु बनाता है। यह मिश्रधातु अनेक क्रियाओं में अपचायक के रूप में उपयोग की जाती है।
उपयोग
सोडियम धातु का उपयोग अपचायक के रूप में होता है। सोडियम परआक्साइड (Na2O2), सोडियम सायनाइड (NaCN) और सोडेमाइड (NaNH2) के निर्माण में इसका उपयोग होता है। कार्बनिक क्रियाओं में भी यह उपयोगी है। लेड टेट्राएथिल [Pb(C2H5)4] के उत्पादन से सोडियम-सीस मिश्रधातु उपयोगी है। सोडियम में प्रकाशवैद्युत (Photo-electric) गुण है। इसलिए इसको प्रकाश वैद्युत सेल बनाने के काम में लाते हैं। कुछ समय से परमाणु ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पादन में सोडियम धातु का बृहद् उपयोग होने लगा है। परमाणु रिऐक्टर (Atomic reactor) द्वारा उत्पन्न ऊष्मा को तरल सोडियम के चक्रण (Circulation) द्वारा जल वाष्प बनाने के काम में आते हैं और उत्पन्न वाष्प द्वारा टरबाइन चलने पर विद्युत् का उत्पादन होता है।
सोडियम के अनेक यौगिक चिकित्सा में काम आते हैं। आज के औद्योगिक युग में सोडियम तथा उसके यौगिकों का प्रमुख स्थान है।

मैग्नीशियम Mg

मैग्नीशियम (अंग्रेज़ी:Magnesium) का प्रतीकानुसार Mg तथा परमाणु संख्या 12 होती है। मैग्नीशियम का परमाणु द्रव्यमान 24.32 होता है। मैग्नीशियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2, 2s2, 2p6, 3s2 है।
प्राप्ति
मैग्नीशियम सल्फेट के रूप में मैग्नीशियम झरने में तथा मैग्नीशियम क्लोराइड के रूप में समुद्री जल में पाया जाता है। पौधे को हरा रंग देने वाले कार्बनिक यौगिक क्लोरोफिल में भी मैग्नीशियम उपस्थित रहता है।
निष्कर्षण
मैग्नीशियम धातु का निष्कर्षण मुख्यतः कार्नालाइड (KCI.MgCI2. 6H2O) अयस्क से किया जाता है।
भौतिक गुण
मैग्नीशियम चाँदी की तरह उजली एवं चमकीली धातु है।
मैग्नीशियम मुलायम, नम्य तथा प्रतन्य धातु है। अतः इसे आसानी से तार या फीते के रूप में प्राप्त किया जा सकता है।

मैग्नीशियम का द्रवणांक 650डिग्री.C तथा क्वथनांक 110 डिग्री.C होता है। मैग्नीशियम का आपेक्षित घनत्व 1.75 होता है।
रासायनिक गुण
1.तनु अम्लों के साथ प्रतिक्रिया कर यह हाइड्रोजन गैस बनाता है।
2.मैग्नीशियम क्षार से किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं करती है।
3.तनु नाइट्रिक अम्ल के साथ यह मैग्नीशियम नाइट्रेट तथा अमोनिया नाइट्रेट बनाता है।
4.शुष्क ईथर की उपस्थिति में यह इथाइल आयोडाइड या ब्रोमाइड से प्रतिक्रिया करके इथाइल मैग्नीशियम आयोडाइड या ब्रोमाइड बनाता है, जिसे ग्रिगनार्ड प्रतिकारक कहते हैं।
5.मैग्नीशियम नाइट्रोजन के साथ प्रतिक्रिया करके मैग्नीशियम नाइट्राइड बनाता है।
मैग्नीशियम के उपयोग
1.फ्लैश लाइट रिबन बनाने में
2.फोटोग्राफी एवं आतिशबाज़ी में
3.ग्रिगनार्ड प्रतिकारक बनाने में
4.मिश्रधातुओं के निर्माण में
मैग्नेशियम का एक भाग मानव-शरीर की प्रत्येक कोशिका में होता है। यह भाग अतिसूक्ष्म हो सकता है, किंतु महत्त्वपूर्ण अवश्य होता है। सम्पूर्ण शरीर में मैग्नेशियम की मात्रा 50 ग्राम से कम होती है। शरीर में कैल्शियम और विटामिन सी का संचालन, स्नायुओं और मांसपेशियों की उपयुक्त कार्यशीलता और एन्जाइमों, को सर्किय बनाने के लिये मैग्नेशियम आवश्यक है। कैल्शियम-मैग्नेशियम सन्तुलन में गड़बड़ी आने से स्नायु-तंत्र दुर्बल हो सकता है।
एक गिलास भारी जल मैग्नेशियम के लियें खाघ-संपूरक है। भारी जल में निरपवाद रुप से उच्च मैग्नेशियम का अंश होता है। भारी जल का प्रयोग करने वाले क्षेत्रों में हृदयाघात न्य़ूनतम होते हैं। इसके अन्य महत्वपूर्ण स्त्रोत है सम्पूर्ण अनाज विशेषकर साबुत अनाज, दाल, सोयाबीन, बादाम, केला, उबले आलू, गिरीदार फ़ल, हरी पत्तीदार सब्जियां, डेरी उत्पाद और समुद्र से प्राप्त होने वाले आहार।

E=mc²

E=mc² ये क्रांतिकारी समीकरण याद है ना। इसी से जुड़ा है आज का दिन। आइनस्टाइन के इसी समीकरण पर ऊर्जा, प्रकाश और द्रव्यमान के करीबन सारे सिद्धांत टिके हैं।
27 सितंबर 1905 को महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइनस्टाइन ने ये सिद्धांत पेश किया। किसी भी पदार्थ से कितनी ऊर्जा निकल सकती है, खुद से पूछे गए इस सवाल के जवाब में आइनस्टाइन ने कहा, पदार्थ के द्रव्यमान को प्रकाश की गति के वर्ग से गुणा कर दीजिए, पता चल जाएगा कि कितनी ऊर्जा निकलेगी। इस समीकरण ने भौतिक, रसायन और परमाणु विज्ञान में क्रांति कर दी।

आइनस्टाइन ने विज्ञान को सापेक्षता का सिद्धांत भी दिया, इसी से आधुनिक क्वांटम भौतिकविज्ञान खड़ा हुआ। 1921 में उन्हें फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव सिद्धांत के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी सिद्धांत की बदौलत आज सभी सेंसर चलते हैं।
1933 में वो दौरे पर अमेरिका गए थे, इसी दौरान जर्मनी में अडोल्फ हिटलर सत्ता में आ गया। इसके चलते आइनस्टाइन वापस लौटे ही नहीं, वो अमेरिका में ही बस गए। आइनस्टाइन को आशंका थी कि नाजी एटम बम बनाने के करीब पहुंच गए हैं. उन्होंने दुनिया भर के नेताओं को परमाणु हथियार के खतरों से वाकिफ भी कराया और कहा कि इंसानियत के खिलाफ इतनी बड़ी भूल न करें।

क्या आपने कभी घड़ियाल Aligator को सोते देखा है

क्या आपने कभी किसी घड़ियाल को सोते हुए देखा है। अगर हां, तो आपने देखा होगा कि सोते वक्त उसकी एक आंख खुली रहती है जिससे वो आपको देख सकता है।
पर क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों है। इसी बात की खोज कुछ ऑस्ट्रेलियाई जीव विज्ञानियों ने की है।
जरनल ऑफ एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी में छपे एक लेख के मुताबिक घड़ियाल सोते वक्त अपनी एक आंख खुली रखते हैं, जिससे वो सबकुछ देख सकते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक समय पर घड़ियाल के मस्तिष्क का एक ही हिस्सा बंद होता है।
ऑस्ट्रेलियाई जीव शास्त्रियों की ओर से किए गए प्रयोग में तीन घड़ियाल के बच्चों को उत्तरी क्वीन्सलैंड से लॉ ट्रोब यूनिवर्सिटी के एक बड़े जल जीवालय में रखा गया। इस दौरान इन पर कैमरों के ज़रिए 24 घंटे निगरानी रखी गई।

प्रयोग के दौरान ये पाया गया कि घड़ियाल सोते वक्त अपनी एक आंख खुली रखते हैं।
लेख के मुताबिक सोते वक्त घड़ियालों के मस्तिष्क का एक हिस्सा निगरानी रखने का काम करता है। जबकि दूसरे हिस्से को आराम मिलता है।
हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि एक आंख खोलकर सोना जीवों में आम बात है। कई किस्म के पक्षी, डॉलफिन मछली और दरियाई घोड़े भी एक आंख खोलकर ही सोते हैं।
स्रोत : बी बी सी

Earthquake (भूकंप)

क्या भूकंप का पूर्वानुमान लगाना संभव है? क्या वैज्ञानिकों को ये मालूम हो सकता है कि कब और कहां भूकंप आ सकता है?

विज्ञान की तमाम आधुनिकताओं के बाद भी ये संभव नहीं है। लेकिन भूकंप आने के बाद उसके असर के दायरे में, ये बताना संभव है कि भकूंप के झटके कहाँ, कुछ सेकेंड बाद आ रहे हैं।
विशेषज्ञ बताते हैं कि सोशल मीडिया में भूकंप आने के बारे में लगाए जा रहे कयास और टिप्पणियां बेबुनियाद और वैज्ञानिक तौर पर अतार्किक हैं।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के दो विशेषज्ञों का भूकंप आने की भविष्यवाणी पर आकलन:
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के प्रोफ़ेसर चंदन घोष बताते हैं, "भूकंप के केंद्र में तो नहीं, लेकिन उसके दायरे में आने वाले इलाकों में कुछ सेकेंड पहले वैज्ञानिक तौर पर ये बताया जा सकता है कि वहां भूकंप आने वाला है।"
हालांकि कुछ सेकेंड का समय बेहद कम होता है। यही वजह है कि इसको लेकर पहले कोई भविष्यवाणी नहीं की जाती है। भारत परिपेक्ष्य में तो ये संभव भी नहीं है। लेकिन जापान में कुछ सेकेंड पहले भूकंप का पता लग जाता है। लेकिन वहां भी सार्वजनिक तौर पर इसकी मुनादी नहीं की जाती है। लेकिन इसकी मदद से बुलेट ट्रेन और परमाणु संयंत्रों को ऑटोमेटिक ढंग से रोक दिया जाता है।"
तो कुछ सेकेंड पहले भी भूकंप का पता कैसे लग सकता है?
प्रोफ़ेसर चंदन घोष बताते हैं, "जब कोई भूकंप आता है तो दो तरह के वेव निकलते हैं, एक को प्राइमरी वेव कहते हैं और दूसरे को सेकेंडरी या सीयर्स वेव। प्राइमरी वेव औसतन 6 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चलती है जबकि सेकेंडरी वेव औसतन 4 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से। इस अंतर के चलते प्रत्येक 100 किलोमीटर में 8 सेकेंड का अंतर हो जाता है। यानी भूकंप केंद्र से 100 किलोमीटर दूरी पर 8 सेकेंड पहले पता चल सकता है कि भूकंप आने वाला है।"
इस लिहाज़ से देखें तो मौजूदा वैज्ञानिक क्षमताओं को देखते हुए भूकंप के बारे में भविष्यवाणी करना नामुमकिन है।
लेकिन सेंकेड के अंतर से जान माल के नुकसान को कुछ कम किया जा सकता है। चंदन घोष के मुताबिक जापान और ताइवान जैसे देशों में इस तकनीक के इस्तेमाल से नुकसान काफी कम हो सकता है। हालाँकि सोशल मीडिया में भकूंप के आने को लेकर कयासबाजी की जा रही है जो निर्रथक है।
ये माना जाता रहा है कि भूकंप आने की जानकारी चूहे, सांप और कुत्ते को पहले हो जाती है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के एसोसिएट प्रोफ़ेसर आनंद कुमार कहते हैं, "चूहे और सांप तो पृथ्वी के अंदर ही रहते हैं तो उन्हें निश्चित तौर पर पहले पता चल सकता है। कुत्तों में भी भांपने की क्षमता होती है। ये मानना काफी हद तक सच हो सकता है, लेकिन इस दिशा में वैज्ञानिकों ने अब तक ज़्यादा शोध नहीं किया है।"

मैरी क्यूरी

मैरी स्क्लाडोवका क्यूरी (लघु नाम: मैरी क्यूरी)विख्यात भौतिकविद और रसायनशास्त्री थी। मेरी ने रेडियम की खोज की थी।विज्ञान की दो शाखाओं (भौतिकी एवं रसायन विज्ञान) में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली वह पहली वैज्ञानिक हैं।

वैज्ञानिक मां की दोनों बेटियों ने भी नोबल पुरस्कार प्राप्त किया। बडी बेटी आइरीन को 1935में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ तो छोटी बेटी ईव को 1965 में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।

मेरी का जन्म पोलैंड के वारसा नगर में हुआ था। महिला होने के कारण तत्कालीन वारसॉ में उन्हें सीमित शिक्षा की ही अनुमति थी। इसलिए उन्हें छुप-छुपाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करनी पड़ी। बाद में बड़ी बहन की आर्थिक सहायता की बदौलत वह भौतिकी और गणित की पढ़ाई के लिए पेरिस आईं। उन्होंने फ़्रांस में डॉक्टरेट पूरा करने वाली पहली महिला होने का गौरव पाया। उन्हें पेरिसविश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर बनने वाली पहली महिला होने का गौरव भी मिला। यहीं उनकी मुलाक़ात पियरे क्यूरी से हुई जो उनके पति बने। इस वैज्ञानिक दंपत्ति ने 1898 में पोलोनियम की महत्त्वपूर्ण खोज की। कुछ ही महीने बाद उन्होंने रेडियम की खोज भी की। चिकित्सा विज्ञान और रोगों के उपचार में यह एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी खोज साबित हुई। 1903 में मेरी क्यूरी ने पी-एच.डी. पूरी कर ली। इसी वर्ष इस दंपत्ति को रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला। 1911 में उन्हें रसायन विज्ञान के क्षेत्र में रेडियम के शुद्धीकरण (आइसोलेशन ऑफ प्योर रेडियम) के लिए रसायनशास्त्र का नोबेल पुरस्कार भी मिला। विज्ञान की दो शाखाओं में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली वह पहली वैज्ञानिक हैं। वैज्ञानिक मां की दोनों बेटियों ने भी नोबल पुरस्कार प्राप्त किया। बडी बेटी आइरीन को 1935 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ तो छोटी बेटी ईव को 1965 में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार मिला।

पुरस्कार :

भौतिकी नोबेल पुरस्कार (1903)
डेवी मेडल (1903)
मैटेक्की मेडल (1904)
एलीयट क्रेसन मेडल (1909)
अलबर्ट मेडल (1910)
रसायन नोबेल पुरस्कार (1911)
विलियर्ड गिब्स पुरस्कार (1921)

धरती पर जीवन

धरती पर जीवन के असंख्य रूप हैं। जीवन यहां इतने विस्मयकारी विन्यास में प्रदर्शित होता है कि यदि इसे यथोचित रूप से वर्गीकृत न किया जाए तो इसे समझना तो दूर की बात है, इसका अध्ययन करना भी असंभव होगा। वनस्पतियों और प्राणियों को वर्गीकृत करने की क्रमबद्ध प्रणाली स्वीडन के जीवविज्ञानी कैरोलस लिनियस के विचारों पर आधारित थी पर कुछ सुधारों के साथ आज भी इसी को अपनाया जा रहा है। उन्होंने वनस्पतियों और प्राणियों के वर्गीकरण से संबंधित अपने विचार ‘सिस्टेमा नेचुरी’ में प्रकाशित किए। सन् 1735 में, सिस्टेमा नेचुरी के प्रथम संस्करण में उन्होंने हर चीज को प्राणि, वनस्पति एवं खनिज जगत में बांटा, कुछ समय बाद उन्होंने नामकरण की ‘द्विनामी पद्धति’ प्रस्तुत की जिसके अन्तर्गत प्रत्येक प्रजाति की पहचान दो शब्दों के नाम से की गई - पहला नाम वंश का और दूसरा प्रजाति का विशिष्ट नाम। उदाहरण के लिए टायरेनोसॉरस रैक्स, जहां टायरेनोसॉरस वंश का नाम है जबकि रैक्स विशिष्ट या जातिगत नाम। यह प्रणाली 1758 तक सम्पूर्ण विश्व में अपना ली गई और लगभग बगैर किसी फेरबदल के आज भी मान्य है।
वर्गीकरण के अनुक्रम तंत्र में सबसे ऊपर आने वाला संवर्ग ‘जगत’ कहलाता है। इस स्तर पर जीवों को कोशिकीय संरचना एवं पोषण की विधि के आधार पर श्रेणीबद्ध किया जाता है। जीव एक कोशिकीय है अथवा बहुकोशिकीय और यह खाद्य पदार्थ अवशोषित करता है, खाता है अथवा उत्पादित करता है। ये विवेचना योग्य तथ्य होते हैं। शुरूआत में यह माना गया था कि केवल दो ही जगत का अस्तित्व है; प्राणि जगत एवं वनस्पति जगत। परन्तु सूक्ष्मदर्शी एवं बेहतर वैज्ञानिक तकनीकों ने इस आधार को विस्तृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। आज जीवविज्ञान जीवधारियों को सामान्यतया पांच जगत (किंगडम) में परिभाषित करता है।
किंगडम एनीमेलिया: बहुकोशीय गतिशील जीव, जो अपना भोजन स्वयं तैयार नहीं कर सकते परन्तु दूसरों पर निर्भर रहते हैं।
किंगडम प्लान्टी: ऐसे जीव जो अपना भोजन खुद तैयार कर सकते हैं। उदाहरण समस्त हरे पौधे।
किंगडम प्रोटिस्टा: जीव जो एकमात्र संश्लिष्ट कोशिका से बने हों। उदाहरण, प्रोटोज़ोआ एवं एककोशीय शैवाल।
किंगडम फंगाई: ऐसे जीव जो अपना भोजन जीवित एवं निर्जीव तत्वों से अवशोषित करते हैं। उदाहरण, यीस्ट।
किंगडम मोनेरा: जीव जो एक सरल कोशिका से बने हों। उदाहरण, जीवाणु एवं नीले-हरे शैवाल।
एक किंगडम अथवा जगत को बहुत भिन्न, सुव्यक्त और निश्चित गुणों के आधार पर फायला यानी संघों में विभाजित किया जाता है। उदाहरण के लिए प्राणिजगत के अन्तर्गत कॉर्डेटा एक प्रमुख संघ है जिसमें आद्यपृष्ठवंश या नोटोकॉर्ड वाले प्राणियों को सम्मिलित किया गया है। नोटोकॉर्ड एक कठोर रॉड की तरह की संरचना होती है जिसे रीढ़ की हड्डी का एक आदिमयुगीन प्रतिरूप माना जा सकता है। अन्य संघों में एनीलिडा या खण्ड कृमि, आथ्र्रोपोडा या जुड़े हुए पैरों वाले जीव एवं इकाइनोडरमेटा, समुद्री जीव जिनमें पांच परती सममिति हो, शामिल हैं। संघ के अन्तर्गत विभिन्न वर्ग या क्लास सम्मिलित होते हैं। एक वर्ग में वे जीव आते हैं जो कुछ मूल लक्षणों में एक समान होते हैं। उदाहरण के लिए, सभी स्तनधारी दुग्धस्राव करते हैं और उनका शरीर बालों या फर से ढका होता है। वर्ग मैमेलिया के अन्तर्गत अनेकों विविधताओं वाले प्राणि आते हैं, जैसे आदमी, जिराफ और व्हेल। संघ आथ्र्रोपोडा के अन्तर्गत इन्सैक्टा (कीट) एक वर्ग है।


एक ही वर्ग के जीवों की तुलना में एक ही गण अथवा ऑर्डर के जीव आपस में अधिक समानताएं रखते हैं। एक ही गण के जीवों को देखने से कई विकासवादी संबंधों को प्राप्त किया जा सकता हैं वर्ग मैमेलिया में लगभग 26 गुण आते हैं। उदाहरण के लिए, मैमेलिया के अन्तर्गत मांसाहारियों को गण कार्निवोरा में रखा गया है जबकि कीटों के भक्षण पर निर्भर रहने वालों को इन्सैक्टिवोरा गण में स्थान दिया गया है। अधिक समानताओं के आधार पर एक ही गण के जीवों को पुनः फैमिली या कुल में विभाजित किया गया है।
एक ही कुल में सम्मिलित जीव आपस में काफी घनिष्ठता रखते हैं। उदाहरण के लिए, बिल्ली के कुल (फैलिडी) में चीता, तेंदुआ, बिल्ली, शेर आदि सम्मिलित हैं और इन सभी में मूंछें और वापस सिमट जाने वाले नुकीले पंजे होते हैं।
एक ही वंश या जीनस में रखे गए जीवों में और अधिक समानताएं होती हैं। उदाहरण के लिए गण कार्निवोरा के अन्तर्गत वंश कैनिस में कैनिस फैमिलिएरिस (कुत्ता), कैनिस मीजोमीलास (रजतपृष्ठ सियार), कैनिस ल्यूपस (धूसर भेडि़या), कैनिस र्यूफस (लाल भेडि़या) और कैनिस लैटराइन्स (भेडि़या) सम्मिलित हैं। वंश प्रजातियों का ऐसा समूह है जिसमें सम्मिलित जीव प्रजातियों के किसी अन्य समूह से अधिक घनिष्ठ संबंध रखते हैं। अंतिम श्रेणी में एक प्रजाति (स्पीशीज) आती है।

James Prescott Joule

जेम्स प्रेस्कॉट जूल (अंग्रेजी: James Prescott Joule)सैल्फोर्ड, लंकाशायर में जन्मे एक अंग्रेज भौतिकविज्ञानी थे।
पुरस्कार : रायल मेड्ल (1852)
कोपली मेडल (1870)
अलबर्ट मेडल (1880)
इनका जन्म मैंचेस्टर के निकट सैल्फोर्ड में 24 दिसंबर, सन् 1818 को हुआ था। अपने जीवनकाल में ये भौतिक राशियों के सही नाप संबंधी अनुसंधानों में निरंतर लगे रहे। सन् 1840 में जूल ने चालक में (विद्युत प्रतिरोध में) विद्युत धारा के प्रवाह से उत्पन्न होनेवाली ऊष्मा की मात्रा मालूम करने का नियम प्राप्त किया, जो जूल का नियम कहलाता है।

इसके बाद जूल ने ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम (First Law of Thermodynamics )का प्रतिपादन किया और चार विभिन्न रीतियों से उष्मा के यांत्रिक तुल्यांक का मान प्राप्त किया। इनमें घर्षण की विधि विशेष उल्लेखनीय है। ब्रिटिश ऐसोसिएशन ने इनको विद्युत् के उष्मीय प्रभाव द्वारा उष्मा के यांत्रिक तुल्यांक का मान प्राप्त करने का भार सौंपा था। जूल ने ऊष्मा की प्रकृति का अध्ययन किया तथा ऊष्मा और यांत्रिक कार्य के बीच संबंध की खोज की। इस खोज की परिणति अंतत: ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धांत मे हुई और ऊष्मागतिकी का पहला नियम प्रकाश में आया।
गैसों का गैसों के द्रवीकरण के क्षेत्र में भी आपने महत्वपूर्ण अनुसंधान किए। लार्ड केल्विन के सहयोग से आपने गैसों का यह नया गुण मालूम किया कि जब कोई गैस सूक्ष्मछिद्र में से होकर ऊँचे दबाव से नीचे दबाव की ओर बहती है तो उसके ताप में ह्रास होता है। इस गुण को जूल-टॉमसन प्रभाव कहते हैं। इसी प्रभाव के आधार पर किए गए प्रयोगों द्वारा ऑक्सीजन, हाइड्रोजन तथा हीलियम आदि गैसों को द्रव रूप में परिणत किया जा सका। जूल ने लार्ड केल्विन के साथ मिलकर तापमान का परम पैमाना विकसित किया था, मैग्नेटोस्ट्रिक्शन पर टिप्पणियां की थीं
उनके सम्मान में अंतर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली में ऊर्जा की इकाई का नाम 'जूल' रखा गया है।

लुई पास्चर

लुई पास्चर एक फ़्रेंच रसायनशास्त्री तथा सूक्ष्म जीव शास्त्री थे। उन्होने जीवाणुओ से होने वाली बीमारीयों तथा टीके के सिद्धांत की खोज की थी। फ्रांस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक लुई पास्चर का जन्म सन् 1822 ई. में नैपोलियन बोनापार्ट के एक व्यवसायी सैनिक के यहां हुआ था।

कर्म-क्षेत्र: रसायन शास्त्र, सूक्ष्म जीव शास्त्र

शिक्षा: École Normale Supérieure

विशेष खोज: रैबीज वैक्सिन

कार्य : स्ट्रासबर्ग विश्वविद्यालय, लील्ले विज्ञान तथा तकनिकी विश्वविद्यालय ,École Normale Supérieure ,पास्चर इंस्टीट्युट

पुरस्कार-उपाधि: लीवेनहोएक मेडल, मान्ट्यान पुरस्कार ,कापली मेडल ,रमफ़र्ड मेडल, अलबर्ट मेडल

सम्मान: लुई पास्चर के सम्मान मे ही दूध को 60 डीग्री सेल्सीयस तक गर्म कर कीटाणु रहित करने की प्रक्रिया को ’पास्चराइजेशन’ कहते है।,

आपने वास्तव में मानव जाति को यह अनोखा उपहार दिया। आपके देशवासियों ने आपको सब सम्मान एवं सब पदक प्रदान किए। उन्होंने आपको सम्मान में पास्चर इंस्टीट्यूट का निर्माण किया: किन्तु कीर्ति एव ऐश्वर्य से आप मे कोई परिवर्तन नहीं आया। आप जीवनपर्यन्त तक सदैव रोगों को रोक कर पीड़ा हरण के उपायों की खोज में लगे रहे। सन् 1895ई में आपकी निद्रावस्था में ही मृत्यु हो गई।

फ्रांस के मदिरा तैयार करने वालों का एक दल, एक दिन लुई पास्चर से मिलने आया। उन्होने आप से पूछा कि हर वर्ष हमारी शराब खट्टी हो जाती है। इसका क्या कारण है?

लुई पास्चर ने अपने सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा मदिरा की परीक्षा करने में घण्टों बिता दिए। अंत में आपने पाया कि जीवाणु नामक अत्यन्त नन्हें जीव मदिरा को खट्टी कर देते हैं। अब आपने पता लगाया कि यदि मदिरा को 20-30 मिनट तक 60 सेंटीग्रेड पर गरम किया जाता है तो ये जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। ताप उबलने के ताप से नीचा है। इससे मदिरा के स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बाद में आपने दूध को मीठा एवं शुद्ध बनाए रखने के लिए भी इसी सिद्धान्त का उपयोग किया। यही दूध 'पास्चरित दूध' कहलाता है।

एक दिन लुई पास्चर को सूझा कि यदि ये नन्हें जीवाणु खाद्यों एवं द्रव्यों में होते हैं तो ये जीवित जंतुओं तथा लोगों के रक्त में भी हो सकते हैं। वे बीमारी पैदा कर सकते हैं। उन्हीं दिनों फ्रांस की मुर्गियों में 'चूजों का हैजा' नामक एक भयंकर महामारी फैली थी। लाखों चूजे मर रहे थे। मुर्गी पालने वालों ने आपसे प्रार्थना की कि हमारी सहायता कीजिए। आपने उस जीवाणु की खोज शुरू कर दी जो चूजों में हैजा फैला रहा था। आपको वे जीवाणु मरे हुए चूजों के शरीर में रक्त में इधर-उधर तैरते दिखाई दिए। आपने इस जीवाणु को दुर्बल बनाया और इंजेक्शन के माध्यम से स्वस्थ चूजों की देह में पहुँचाया। इससे वैक्सीन लगे हुए चूजों को हैजा नहीं हुआ। आपने टीका लगाने की विधि का आविष्कार नहीं किया पर चूजों के हैजे के जीवाणुओं का पता लगा लिया।

इसके बाद लुई पाश्चर ने गायों और भेड़ों के ऐन्थ्रैक्स नामक रोग के लिए बैक्सीन बनायी: पर उनमें रोग हो जाने के बाद आप उन्हें अच्छा नहीं कर सके: किन्तु रोग को होने से रोकने में आपको सफलता मिल गई। आपने भेड़ों के दुर्बल किए हुए ऐन्थ्रैक्स जीवाणुओं की सुई लगाई। इससे होता यह था कि भेड़ को बहुत हल्का ऐन्थ्रैक्स हो जाता था; पर वह इतना हल्का होता था कि वे कभी बीमार नहीं पड़ती थीं और उसके बाद कभी वह घातक रोग उन्हें नही होता था। आप और आपके सहयोगियों ने मासों फ्रांस में घूमकर सहस्रों भेड़ों को यह सुई लगाई। इससे फ्रांस के गौ एवं भेड़ उद्योग की रक्षा हुई।

आपने तरह-तरह के सहस्रों प्रयोग कर डाले। इनमें बहुत से खतरनाक भी थे। आप विषैले वाइरस वाले भयानक कुत्तों पर काम कर रहे थे। अत में आपने इस समस्या का हल निकाल लिया। आपने थोड़े से विषैले वाइरस को दुर्बल बनाया। फिर उससे इस वाइरस का टीका तैयार किया। इस टीके को आपने एक स्वस्थ कुत्ते की देह में पहुँचाया। टीके की चौदह सुइयाँ लगाने के बाद रैबीज के प्रति रक्षित हो गया। आपकी यह खोज बड़ी महत्त्वपूर्ण थी; पर आपने अभी मानव पर इसका प्रयोग नहीं किया था। सन् 1885 ई. की बात है। लुई पाश्चर अपनी प्रयोगशाला में बैठे हुए थे। एक फ्रांसीसी महिला अपने नौ वर्षीय पुत्र जोजेफ को लेकर उनके पास पहुँची। उस बच्चे को दो दिन पहले एक पागल कुत्ते ने काटा था। पागल कुत्ते की लार में नन्हे जीवाणु होते हैं जो रैबीज वाइरस कहलाते हैं। यदि कुछ नहीं किया जाता, तो नौ वर्षीय जोजेफ धीरे-धीरे जलसंत्रास से तड़प कर जान दे देगा।

आपने बालक जोजेफ की परीक्षा की। कदाचित् उसे बचाने का कोई उपाय किया जा सकता है। बहुत वर्षों से आप इस बात का पता लगाने का प्रयास कर रहे थे कि जलसंत्रास को कैसे रोका जाए? आप इस रोग से विशेष रूप से घृणा करते थे। अब प्रश्न था कि बालक जोजेफ के रैबीज वैक्सिन की स

Friends Forever

फ्लोरीन Fluorine

फ़्लोरीन आवर्त सारणी के सप्तसमूह का प्रथम तत्वहै, जिसमें सर्वाधिक अधातु गुण वर्तमान हैं। इसका एक स्थिर समस्थानिक प्राप्त है और तीन रेडियोऐक्...